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________________ 100 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य में दो युवतियाँ हैं। विद्यमान किसी भी बाहुबलि के शिल्प में इतने तरतीब से पीठ पर फैले केश दिखाई नहीं पड़ते। प्रो. के. ढाके इस दुर्लभ धातु-प्रतिमा पर विचार करते हुए यह कहते हैं कि, 'यह प्रतिमा ज्यादातर 'कुशान' युग की तथा चौथी सदी (ए.डी) के बाद की हो सकती है। मैं भी ढाके जी से सहमत हूँ। संक्षेप में, बाहुबलि संप्रदाय बादामी साम्राज्य में बहुत प्रचलित तथा लोकप्रिय था। यदि ऐहोळे-बादामी की जैन गुफाओं के शिल्प बाहुबलि की इस प्रकार स्वतंत्र धातु प्रतिमाओं से प्रेरित रही होगी तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कोष्टराय कोष्टराय अगस्त्य तीर्थ के दक्षिण-पूर्व तट के पाषाण में खोदी विशाल प्रतिमा 'कोष्टराय के नाम से जानी जाती है। इस प्रतिमा के प्रति स्थानीय लोगों में कुछ धारणाएं प्रचलित हैं। उनके अनुसार, कुष्ट रोग से पीडित राजा ने पास ही के अगस्त्य तीर्थ में डुबकी लगाई और वह रोगमुक्त हो गया। इस प्रकार की दंतकथाओं, धारणाओं को विशेष महत्व न देते हुए, विद्वानों ने इस शिल्प का जिन, बुद्ध तथा कीर्तिवर्म से संबंध जोडा और अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए.... 1. 'बुद्ध की मुद्रा में आसनस्थ होने पर भी यह प्रतिमा न तो बुद्ध और न . ही जिन का प्रतिनधित्व करती हैं।' 2. ए. सुंदर का कथन है, 'यह शिल्प राजा कीर्तिवर्म प्रथम का हो ऐसा लगता है। संभवतः मंगलेश ने इसको बनवाया था, जो अपने भाई का बहुत आदर करता था।' 3. ए.एम अण्णिंगेरि को ऐसा लगता है कि कोष्टराय निश्चित ही बादामी के . किले का खजांची रहा होगा और जो बाद में यति बन गया होगा। (1958, 33) 4. करोल रेडिकलिफ्फ का कथन है कि, 'मेरे लिए इस प्रतिमा की तीथि तथा पहचान रहस्यपूर्ण लगती है।' 5. . बी.वी. शेी लिखते हैं, 'मुख्य प्रतिमा का शीर्ष पद्मासन में बंधे पैर, ध्यानमुद्रा में बांया हाथ, मकर से सुशोभित सिंहासन, तथा दो चामरधारी आदि सभी ऐहोळे की जैनगुफा (छठी सदी) की सारणियों में खुदवाये तीर्थंकरों से मिलती जुलती है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि चर्चित शिल्प निःशंकित उस शिल्पकार से खुदवाया गया है जो जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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