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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 99 फर्ग्युसन तथा बर्गेस दोनों, बाहुबलि के गोम्मट तथा गोतमस्वामी, गणधर जो कि मुनि थे, के उपनाम से भ्रम में पड़ गए थे और फिर तो और भी उलझ गए जब उन्होंने बाहुबलि तथा पार्श्व दोनों के शरीरों को लताओं से जकडे देखा। गोतमस्वामी पार्श्वनाथ के साथ अक्सर गुफा शिल्पों में नग्न तथा लताओं से जकडे दृष्टिगोचर होते हैं। (James Furgusson and James Burgess: (1880) 1988:488) यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि बाहुबलि (गोम्मट) का प्रथम तीर्थंकर के गणधर गोतमस्वामी या तीर्थंकर पार्श्वनाथ से कोई लेना देना नहीं है। किंतु फर्ग्युसन तथा बर्गेस के संबंध में यह कहना जरूरी है कि उन्होंने ही पहली बार 1880 में पार्श्व तथा बाहुबलि के शिल्पों को एक समान पाया। (नागराजय्या हंपाः जिन पार्श्व मंदिर 1999 : pp. 51-52) दिलचस्प बात यह है कि बाहुबलि की स्वतंत्र और अप्रतिम प्रतिमाएं इसी युग में प्रकाश में आयीं। प्रो. सैम्युएल इलेनबर्ग के संग्रह का चौथी तथा छठी सदी के मध्य का धातु शिल्प बादामी चालुक्यों की शैली का है। विश्वपद्म पर ध्यान धारणा में लीन, कायोत्सर्ग मुद्रा में खडी युवा बाहुबलि की प्रतिमा के मुख पर एक विशेष / प्रकार का स्मित और आनंद झलकता हुआ दिखाई पड़ता है। इस प्राचीन प्रतिमा के महत्व की चर्चा करते समय विद्वान एवं कला ?इतिहासकार यू.पी. शाह कहते हैं कि, 'बाहुबलि के शरीर पर न तो कोई वस्त्र है और ना ही कोई आभूषण। केवल - लताओं से उसका शरीर, पैर तथा भुजाएँ आदि आवृत हो गये हैं। उसके धुंघराले बाल उसकी पीठ तथा उन्नत कंधों पर फैले हैं। उसके केश पीछे की ओर मुडे हैं। इस प्रकार के केशभूषावाली बाहुबलि की प्रतिमाएं संभवतः श्रवणबेळगोळ में प्राप्त हुई थीं जो आज मुंबई के प्रीन्स ऑफ वेल्स के संग्रहालय में मौजुद है। इस प्रकार के केशभूषावाली बाहुबलि की धातु-प्रतिमा का ऐहोळे तथा बादामी में पायी जाने वाली प्रतिमाओं से तुलना की जा सकती है। जबकि इनकी संपूर्ण शरीरसंरचना का स्वरूप ऐहोळे-बादामी की गुफाओं में पायी जानेवाली प्रतिमाओं से साम्य रखती है। इलिनबर्ग के संग्रह में प्राप्त बाहुबलि की प्रतिमा, जहाँ तक मैं समझता हूँ भारत में पायी जाने वाली सबसे प्राचीन प्रतिमा है'। (यू.पी. शाह 1986: pp.397-98) उपर्युक्त धातु-प्रतिमा की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें न तो सर्प है, ना बांबी और ना ही उसकी बगल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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