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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 97 था जो दोड्ड बेट्टा (बडा पहाड़ - विंध्यगिरि) (श्रवण बेलगोल) की ऊँची चोटी की याग्मेत्तर रेखा पर पहुंचा था। उसके बाद तो गोम्मट यह नाम बाहुबलि के लिए प्रचलित हुआ। संक्षेप में, जहाँ तक प्रतिमागत विवरण का सवाल है, श्रवणबेळगोळ की एकदम विशाल प्रतिमा 981 में गंग राजा के सेनापति तथा मंत्री चामुंडराय द्वारा संस्कारित की गई थी। जो कि ऐहोळे बादामी से भिन्न थी। बल्कि इसी विषय पर बने शिल्पों के लिए एक नया साँचा था। तथापि पुरातत्विय साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि चालुक्यों की जैन गुफाओं में पहली बार बाहुबलि ने दृश्यात्मक प्रतिनिधित्व पाया था। ___ दक्षिण में बाहुबलि-कला का वैशिष्ट्यपूर्ण प्रवाह प्रारंभ करने का यश चालुक्य शिल्पकारों को जाता है। उन्होंने बाहुबलि की कथाओं की वृद्धि शिल्पों में की और बाद के कलाकारों तथा लेखकों ने फिर अपनी कल्पना भी उसमें डाल दी और अपनी प्रतिमा को चार चाँद लगा दिये। ___ बाहुबलि को संयम की मुद्रा में चित्रित किया गया है जिसे दार्शनिक शब्दावली में कायोत्सर्ग मुद्रा कहा गया है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, यह परंपरा दोड्ड बेट्टा श्रवण बेलगोल (981) में अपनी चोटी पर पहुंची। The earliest extant relief of Bahubali, Cave IV, Badami Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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