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________________ 96 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य बादामी गुफा की बायीं ओर, कोने का तथा वीथिका का शिल्प एकदम सुंदर तथा अद्वितिय है। इस शिल्प की अर्थ-छटा देखते ही बनती है। बाहुबलि की नक्काशी में पौराणिक विषयवस्तु का प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता है। विद्याधरों पर मंडराने वाली दिव्य युवतियों में परम-भक्तिभाव दृष्टिगोचर होता है। माधवी लताएँ उसके पैरों तथा भूजाओं पर चढी हुई है। सर्प उसके चरणों की ओर बांबियों से रेंगते हुए आ रहे हैं और अपना फन फैला रहे हैं। बाहुबलि आकाशस्थ प्राणियों से घिरे हैं मानो वे प्राणी उनको अपनी श्रद्धांजली दे रहे हैं। बाहुबलि की अगल बगल में खडी दो अलंकृत युवतियाँ उनकी बहनें हैं जो क्रमशः ब्राह्मी और सुंदरी के नाम से जानी जाती हैं। इस पर कई विद्वानों ने विस्तृत विवरण दिया है। विशेषकर दो जैन परंपरा के संदर्भ में पुनर्विचार की आवश्यकता है। दिगंबर आचार्य जिनसेन (859) ने अपने आदिपुराण में यह कहा है कि उन युवतियों ने लताओं में जकडे बाहुबलि को उसकी तपस्या हेतु प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए मुक्त किया। कलि काल के सर्वज्ञ विद्वान श्वेतांबरी आचार्य हेमचंद्र ने (1088-1172) बहुत जोर देकर कहा है कि ब्राह्मी और सुंदरी उस दृश्य में इसलिए दिखाई देती हैं क्योंकि वे अपने भाई की देह को लताओं की जकड़न से मुक्त करना चाहती थी। पम्प ने (पंप ने) (941) वर्गीकृत रूप से कहा है कि खेचर वर्ग की परियाँ इस दृश्य में दिखाई देते हैं और उन्होंने ही उन लताओं को साफ किया था। (पम्पआदिपुराण-14-141) बाहबलि के केश करीने से पीछे की ओर मुड़े हैं। उसके कंधों पर झुलते हुए घुघराले बाल प्रथम तीर्थंकर बाहुबलि के पिता, ऋषभ की याद दिलाते हैं, शिल्पों में उसको कंधों पर झूलते घुघराले बालों के साथ चित्रित किया है। बाहुबलि अपने दूसरे नाम गोम्मट से अधिक प्रसिद्ध थे। बाहुबलि को चित्रित करने की तीन भिन्न भिन्न शैलियाँ हैं. 1. सिर से लेकर भूजाओं तक गिरते फैलते घुघराले बाल 2. कंधों तक फैले घुघराले बाल 3. धुंघराले बाल जो गोलवृत्त में उनके सिर पर मुकुट की तरह दीखते हैं। बाहबलि की नक्काशी के संरचनागत मूल्य महत्वपूर्ण है और इसके लिए अतिशयोक्ति की आवश्यकता नहीं है। जैनशिल्प की भव्य परंपरा का यह प्रारंभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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