________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 95 बाहुबलि-गोम्मट ___गुडणापुर के पुरालेख के अनुसार कदंब राजा रविवर्म (485-519) ने हाकिनिपल्ली में कामजिनालय तथा काल्लीलि में पद्मावती मंदिर का निर्माण किया। उसने प्रार्थना मंदिरों के अलंकरण के लिए इडिऊरु दहरकवेंगुलि तथा मुकुंडी गाँवों तथा 51 निवर्तन की जमीन तथा चार निवर्तन की आवासी भूमि आदि से आय का प्रबंध किया। (गोपाल : CKI: 81-91: Intro. LVII-LX) बी. आर, गोपाल कामजिनालय को बाहुबलि के मंदिर के रूप में मानते है और इस उक्ति की तुलना जिनेन्द्रमहिमा-कार्य से की है जो कि उसी राजा के हल्सी के तामपत्र में मिलती हैं। इस मंदिर को कामजिनालय भी कहा जाता था जो बेशक एक बसदि है, जिसमें बाहुबलि की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। ये कर्नाटक में बाहुबलि तथा पद्मावती की पूजा के प्रारंभिक संदर्भ है, जो कि वैशिष्ट्यपूर्ण है। (राजशेखर एस. कर्नाटक की शिल्पकला-1985-8-9) तथापि, हाल ही में गुडणापुर के उत्खनन में एक जिनालय में टूटी तथा खंडित प्रतिमाओं समेत कई जैन प्रतिमाएँ पायीं गयी जो एक ही सोपान पर खडी थी। ___ जैन अवशेषों के संचय में बाहुबलि के कोई चिह्न प्राप्त नहीं हुए। जबकि जैनों से संबंधित पद्मावती की एक प्राचीन मूर्ति उसी स्थान में पायी गयी। विद्यमान सामग्री यह सूचित करती है कि कामजिनालय बाहुबलि को समर्पित नहीं था। यह मंदिर पद्मावती को समर्पित था। जहाँ काम और रति की प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठापित थी। . अभिलेखिय संपुष्टि सुनिश्चित करती है कि आदिकदंब जिनधर्म के निष्ठावान भक्त थे और जैन कला तथा संस्कृति के प्रति बहुत अधिक अनुकूल थे। तथापि बाहुबलि की प्रतिमाएँ अब तक विद्यमान नहीं है। बाहुबलि, ऋषभ उपनाम आदिनाथ का पुत्र तथा भरत का छोटा भाई 12 चक्रवर्तियों में से पहला चक्रवर्ती था और जैन परंपरा में 24 कामदेवों में सबसे प्रथम था। जैन अवधारणा के अनुसार, कामदेव मतलब अत्यंत सुंदर व्यक्ति। कणकलि जिला के प्राचीन स्थान पर उत्खननित अवशेषों के संचय में बाहुबलि की कोई प्रतिमा या शिल्प प्राप्त नहीं हुआ था। संक्षेप में गुप्तोत्तर युग में बाहुबलि की पूजा-प्रार्थना बहुत लोकप्रिय हो गई। अब तक विद्यमान बाहुबलि की प्राचीन प्रतिमा सैम्युअल इलेनबर्ग के संग्रह में प्राप्त एक धातु के शिल्प की है, जो छठी सदी की है, जिसके केश करिने से ऊपर की ओर मुडे तथा कंधे पर गिरते हुए दिखाई देते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org