________________ 90 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य दे कि अगर हिंसा हुई है तो कहाँ हुई है। आग से एक लकडी निकालकर पार्श्व ने उसके दो टुकड़े किए और उसमें से दो अधजले सर्प उससे बाहर निकले, क्रुद्ध कमठ ने प्रतिरोध लेना चाहा और शंबर (मेघमाली) के रूप में जन्म लिया। सर्प ने घरणेन्द्र (नागों का राजा) के रूप में जन्म लिया और पद्मावती धरणेंद्र की पत्नी बन गई। __ वृक्ष के नीचे खडे होकर पार्श्व कडी तपस्या कर रहा था। अपनी पिछली घृणा को याद कर शंबर (भूतानद, मेघमालि) ने उस पर कई प्रकार से हमला किया और आखिर ऐसी वर्षा की कि बाढ़ आ गई जिसमें पार्श्व नाक तक डूब गया। सहानुभूति से प्राकृतिक आपदा को समझकर धरणेंद्र अपनी रानी के साथ उस जगह पर तत्काल पहुँच गया। धरणेंद्र ने अपने फन को पार्श्व के सिर पर छत्र के रूप में धर दिया और अपने शरीर से पार्श्व के शरीर को जकड़कर उसे पानी से बाहर निकाला। शंबर के द्वारा दी गई वेदना की कसक से ध्यान बटाने के लिए नाग की रानी ने नत्य किया। इस पूरी घटना के दौरान अर्थात प्राकृतिक आपदा तथा उसकी रक्षा के दौरान, पार्श्व तटस्थ सा खडा था। अपने बुरे विचारों तथा कार्यों का त्याग कर कमठ अनुताप से पार्श्व के चरणों में झुक गया। शिल्पगत पृष्ठभूमि धरणेन्द्र तथा पद्मावती की परिकल्पना तथा पंथ के (नीचे से ऊपर तक) के उद्भव और विकास का परीक्षण करते हुए यु. पी. शाह (1987: 4 266-80) ने कमठ तथा पार्श्व की शत्रुता, जिसने पार्श्व को उसकी तपस्या भंग करने तथा उसको तंग करने के लिए उकसाया, की पृष्ठभूमि का अनुशीलन किया। इस प्रक्रिया में कमठ ने घनघोर अग्नि वर्षा, सिंह, भैसा, बिच्छू तथा बेताल को उस पर छोडा, भयंकर ध्वनियाँ की और तपोमग्न पार्श्व पर बडे बडे पत्थर फेंके। तथापि उपसर्ग के कारण पार्श्व पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ वह और स्थिर तथा निश्चल खड़ा रहा। इस प्रकार कमठ का पार्श्व पर किया गया आक्रमण हमें बुद्ध की याद दिलाता है जिस पर भी मार द्वारा आक्रमण किया गया था। बुद्ध और जैन के ये आक्रमण इंद्र-वृत्र युद्ध की वैदिकवार्ता की भी याद दिलाते हैं। ऐसा लगता है जैसे यह सब अच्छे बुरे, सत्य-असत्य, सुर-असुर, प्रकाश-अंधकार की शक्तियों के बीच की अनादि लडाई की प्रतिध्विनियाँ ही होंगी। (यू.पी.शाह:3) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org