________________ 88 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य जिन पार्श्व 1. पार्श्व के शीश पर बना पाँच फनोंवाला सुरम्य छत्र एक दुर्लभ चित्र है, कारण __ अन्य स्थानों पर सामान्यतः सात फनोंवाला छत्र होता है। 2. सर्पछत्र वाला मुकुट धारण करने वाली देवी, यक्षी पद्मावती पाँच फनों वाले छत्र के ऊपर वज्रमय छत्र को पकडे खडी है। उसे जिन के दाहिने ओर खडे दिखाया गया है, जो कि दुर्लभ है। सामान्यतः अन्य जगहों पर यक्षी को जिन की बायीं ओर दिखाया जाता है। 3. पार्श्व के चरणों में भक्तिभाव से बैठे राजपरिवार के एक गृहस्थ को दिखाया गया है। जिसे कमठ उपनाम शबंर के नाम से जाना जाता है। .. 4. अर्हत पार्श्व कायोत्सर्ग मुद्रा में खडे हैं। 5. छत्र के ऊपर विद्याधरों को हवा में झूलते दिखाया गया है, जो अलौकिक फूलों की वर्षा कर रहे हैं। जो अष्टमहा प्रातिहार्यों के ही द्योतक है, जो अर्हत पार्श्व की प्रतिमा का ठोस लक्षण है। 6. पार्श्व के सिर के बायीं ओर कमठ को एक बड़ा सा शिलाखंड उठाए ध्यानमग्न जिन की ओर फेंकते हुए दिखाया गया है। 7. इस शिल्प को कमठोपसर्ग कहा जाता है। 8. जहाँ तक विषयवस्तु की बात है, यह चालुक्य शिल्प का प्रारंभिक रूप है, ____ हालाँकि इसे इससे भी पूर्व का प्रतिनिधित्व करनेवाला माना जाना चाहिए। पारंपरिक पृष्ठभूमि ___ अर्हत पार्श्व तथा बाहुबलि के महत्व को अच्छी तरह से तभी समझा जा सकता है जब उसकी पारंपरिक पृष्ठभूमि पर भी एक नज़र डाल लें। 24 वें तीर्थंकरों की परंपरा ई. पू. तीसरी सदी के आसपास स्थापित हुई। किंतु यह कथन अंतिम नहीं है। इसपर अभी भी चिंतन चल रहा है। इन तीर्थंकरों में पार्श्व को सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। 23वें तीर्थंकर के रूप में पार्श्व की ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। पार्श्व का जन्म वाराणसी में ईक्ष्वाकु वंश में हुआ था इसका उल्लेख करने वाला प्राचीन ग्रंथ है इसिभासिआइण ( संस्कृत ऋषिभाषितानि, ई.पू. दूसरी सदी) और आर्यशामा लिखित प्रथमानयोग तथा दंडिकानुयोग ( ई.पू. प्रथम सदि)। अश्वसेन तथा वामा उसके माता पिता थे। तीस वर्ष की आयु में सिंहासन का त्याग कर पार्श्व ने लगभग सात दशकों तक की लंबी अवधि तक उपदेश दिया और बिहार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org