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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 79 पूर्वाधिकारी से अनुवांशिक नाम दिए गए। पुलिगेरे मठ के तत्कालीन प्रमुख अनुदेशक को पंडित कहा जाता था और भट्टारक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। हालाँकि ये पंडित दिगंबर पंथ, मूलसंघ के थे और उनका दल देवगण था। __ पंडित शब्द भट्टारक का समानार्थी लगता है, अर्थात आश्रम तथा समुदाय का प्रमुख जो कि मंदिर प्रशासन का प्रमुख भी होता था। उदाहरणार्थ, श्रवणबेळगोळ तथा मूडबिदरे जैन मठ के प्रमुख को उसी प्राचीन तथा पारंपरिक चारुकीर्ति पंडित नाम से जाना जाता है। पूर्ववृत के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि आदिसेन पंडित देवेन्द्रसेन पंडित, जयदेव पंडित, विजयदेव पंडित तथा निर्वध पंडित आदि भट्टारक थे तथा अपने धर्म प्रांत के प्रमुख थे। __इसी युग से यक्ष तथा यक्षी की पूजा तथा भक्ति में पारदर्शिता आयी। कर्नाटक में सबसे पहले अंबिका तथा सर्वाह यक्ष की पूजा का प्रारंभ हुआ। तदुपरांत 23 वें तीर्थंकर अर्हत पार्श्व के आराध्य देवी पद्मावती और धरणेंद्र, तथा आठवें तीर्थंकर . चंद्रप्रभा के आराध्य देवता विजय उपनाम श्याम तथा ज्वालामालिनी देवी की पूजा का प्रारंभ हुआ। ... अंबिका का दुर्लभ वैशिष्ट्य यह है कि वह पूर्वी तथा परवर्ती चालुक्यों की कुलदेवता बन गयी। कोल्लिपाक (कोलनुपाक) के मुख्य मंदिर में ही एक स्वतंत्र मंदिर में अंबिका की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई जो उस युग में बहुत लोकप्रिय हुई थी, केशिराजा ने (चालुक्यों के शासनकाल का सामंत) मानस्तम्भ बनवाया और वे ही मकर तोरण बनाने के लिए कारणीभूत हुए थे। ___ अंबिकादेवी मठ के अन्य दो नाम थे- अंबरतिलक बसदी तथा अक्कबसदी। अक्का का अर्थ है बड़ी बहन और सामान्यतः इस शब्द का प्रयोग स्त्री को आदर देने के लिए भी किया जाता है। सायिपय्या दंडनायक- महाप्रधान तथा राज परिवार का गृह अधीक्षक (suprintendant) चालुक्य राजकुमार सोमेश्वर, त्रिभूवनमल्ल विक्रमादित्य (षष्ठं) (1076-1125) के पुत्र ने अंबिका यक्षी मंदिर के लिए ई.स. 1125 को पोळालु के समिपस्थ पाणुपुर ग्राम दान में दिया। यह ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक है कि एक पुरालेख में इस मंदिर का चालक्यकुल तिलक बसदी के रूप में उल्लेख किया गया है। (नागराजय्य हं प. : Apropos of Vikramaditya VI:1999:p. 38) " (पांडियूरु-हाडियूरु) आडूरु (हावेरी जिला हानगल तालूका) सातवीं सदी के प्रारंभ से प्रसिद्ध जैन केंद्र था। यह स्थान गांगि-पांडियूर की तरह ही प्रसिद्ध था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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