________________ 78 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य जैन आश्रमों तथा मठों को प्राप्त होने वाले अनुदान, उपहार तथा निधियों का सबसे अधिक हिस्सा व्यापारी समुदाय या श्रावकों की अपेक्षा राजा रानियों की ओर से आता था। आदिकदंबों के काल में स्थितियाँ लगभग इसी के समानांतर थी। किंतु राष्ट्रकूटों के शासनकाल के दौरान तथा उसके बाद जैन संघ धर्म को जीवित रखने के लिए राजपरिवारों से इतर परिवारों ने भी नीधियों तथा अनुदान देने में भाग लिया। इसी प्रकार आदिकदंबों तथा चालुक्यों के शासन काल की अपेक्षा गंगों तथा राष्ट्रकूटों के काल से राजपरिवार तथा आम परिवार की महिलाओं ने भी श्रमण संघ की धार्मिक गतिविधियों में अपनी रुचि दिखाई। इस प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन यह दर्शाता है कि जैन संघ की गतिविधियाँ में महिलाओं की भूमिका की ग्राफ रेखा ऊपर की ओर बढ़ती है। चालुक्यों के साम्राज्य में निम्नलिखित ग्राम तथा शहर जैनों के प्रमुख तथा महत्व के केन्द्र थे आडूरु, ऐहोळे, अण्णिगेरी, बादामी, बंकापुर, भाल्कि, गडिकेशवार, जैबुळगेरि, कळ्वप्पु, केल्लिपूसूरु, किसुवोळल (पट्टदकल) कोगलि, कोपण, मल्लसमुद्र, नविलूरु / पलसिगे (हलसि) परलूरु (हल्लुरु) पोम्बुलच, (हुंचा) तथा पूलि (हूलि) जैन समुदाय का सारसर्वस्व, उन्नति, प्रगति तथा प्रवाह इन स्थानों पर बहुत सक्रिय थे। हळ्ळूरु परलुरु संघ का मूल स्त्रोत था तो नविलुरु संघ का प्रधान स्थान था। -देवगण मूलसंघ का एक महत्वपूर्ण देवगण अंग था जो चालुक्य साम्राज्य में केवल सिकुडा ही नहीं बल्कि लुप्त हुआ और देसिगण को ऊभारने का मौका मिला। मैं यह सुझाव देने का साहस करता हूँ कि देवगण, देसिगण में घुलमिल गया होगा और राष्ट्रकूटों के शासनकाल में मुनियों का लोकप्रिय अध्याय ही जैसे खुल गया हो। इसी के समान, जैन मुनियों की आवासी इकाई, परलूरु संघ का भी कोई निशान चालुक्यों के युग के बाद नहीं मिलता। आश्चर्य की बात है कि तत्कालीन जैन रिकार्डों में कोंडकुंद अन्वय का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। ___लंगभग पाँचवीं सदी के प्रारंभ में मंदिरों के परिसर के पास मठ बनाए गए थे। आचार्य, वरिष्ठ मुनि, धर्मग्रंथ के ज्ञाता और जिसने धर्मशास्त्र का प्रतिपादन किया, गृहत्यागी तथा घुम्मक्कड थे, वर्षाकाल को छोडकर जब उनको चातुर्मास का पालन करना होता, चातुर्मास के बाद ये धर्मगुरु एक जगह पर लंबे समय तक नहीं रहा करते थे। भट्टारक तथा विद्वानों ने, मध्यकालीन युग में केंद्रीय आकृति रची। उन्होंने मठ संबंधी व्यवस्था की पहल की और उनके पट्ट (पीठ) के समय उनको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org