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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 77 के रूप में हुआ है तो दूसरे भाग में इसका उल्लेख मयूर संघ के रूप में हुआ है। इसी के साथ साथ नविलूरू ने एक और नाम अर्जित किया है और वह है मयूरपुरा लोकमहादेवी तथा त्रैलोक्य महादेवी 'हैहय राजवंश की राजकुमारियाँ तथा विक्रमादित्य की रानियाँ ने अपने पतियों द्वारा कांचि पर लगातार तीन बार विजय प्राप्ति के उपलक्ष्य में किसुवोळाल में लोकेश्वर मंदिर (विरुपाक्ष) तथा त्रैलोकेश्वर मंदिर (मल्लिकार्जुन) बनवाया। चालुक्य शिल्पकला निर्दोष कला के चरमबिंदु की साक्ष्य है। सर्वसिद्धि आचारी तथा गुंड अनिवारिता आचारी, इन दो निपुण शिल्पकारों ने उपर्युक्त दोनों मंदिरों को इतने निर्दोष रूप से सजाया और तराशा ताकि वे दोनों मंदिर युग की कला के अप्रितम उदाहरण सिद्ध हो। इन कुशल तथा दक्ष कलाकारों को पेरजेरेप अर्थात 'उदार स्वागत' की उपाधि से नवाज़ा गया। उस युग में शिल्पकला की रेखानगर-शिखर-शैली बहुत लोकप्रिय हुई। यापनीया संघ ने आदिकदंबों के बाद उभरे नए साम्राज्य में कितनी घुसपैठ की, यह अध्ययन का एक और विषय है। ऐसा माना जाता है कि राजकवि रविकीर्ति इस यापनीया संघ से संबंधित था। तथापि मैं यह प्रश्न आगे के अनुसंधान हेतु रखना चाहूँगा। . जैन स्मारकों के अवशेषों को पुलिगेरे के आसपास में जो बिखरा दिया गया है वह यही दर्शाता है कि जैन मंदिर को कितना नुकसान पहुँचाया गया है। ___ पुलिगेरे में स्थित पथरीली चट्टान का दूसरा हिस्सा सत्याश्रय (पुलकेशी) चालुक्य रणपराक्रमाणक और उसके पुत्र एरेय्या का उल्लेख करता है। शिलालेख में चैत्य शंखजिनेंद्र को दी गई जमीन का भी उल्लेख है। रेवरेंड जे.एफ. फ्लीट ने सही ही देखा है कि उपर्युक्त रिकार्ड पूर्व तिथि का ही है जिसकी दूसरी प्रतिलिपि भावी पीढी के लिए तैयार की गई थी। ताम्रपत्र से शिलाओं पर, टूटी शिलाओं से अच्छी शिलाओं पर, भूर्जपत्र से अन्य भूर्जपत्रों पर की जानेवाली प्रतिलेखन की यह प्रक्रिया असामान्य नहीं थी। फ्लीट का यह परीक्षण है कि संभवतः रणपराक्रमाणक रणराग (पुलकेशी प्रथम का पिता तथा जयसिंह प्रथम का पुत्र) का भी यही अभिप्राय रहा होगा, इसकी उपेक्षा नहीं का जा सकती। अतः पुलिगेरे के पुरालेखों को विचाराधिन रखते हुए छठी सदी के मध्य के माने जा सकते हैं। इसके अलावा सेंद्रक राजा दुर्गशक्ति का उल्लेख स्पष्ट रूप से इसकी संपुष्टी करता है। प्राप्त रिकार्ड, अप्रामाणिक तथा अन्य जैन समुदाय के साथ राजा पुलकेशी से संबंध की पुष्टी करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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