________________ 76 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य वर्षों में जिसका उत्खनन किया गया था, वह बादामी से कुछ दशक पहले की है। वर्णक्रमानुसार तथा शैली अनुसार पहली गुफा कीर्तिवर्म के शासनकाल की है तो दूसरी मंगलेश के काल की। ऐहोळे तथा बादामी की जैन गुफाओं के कलाकार भिन्न-भिन्न थे। इस काल का जैनकला तथा शिल्पकला को जो योगदान मिला उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता तथा गुणवत्ता की मात्रा की दृष्टि से यह प्रचुर है। इसकी विस्तार से चर्चा शिल्पकला के अध्याय में होगी। जैन मंदिर पाँच प्रकार की गतिविधियों जैसे प्रार्थना, अन्नदान, चिकित्सा, आश्रय तथा शिक्षा के केंद्र थे। अंतिम चार को एक ही शब्द चतुर्विध-दान में समाहित किया जा सकता है। धार्मिक आवेग का संवर्धन करना मात्र इसके पार्श्व की भावना नहीं थी। बल्कि सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्माण करना भी था, जिससे मनुष्य स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकें। ___नविलूर (धारवाड जिला? तालूका) प्रधान जैन स्थान के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जिसमें कई सारे आश्रम और मठ थे। किसी एक जैन संघ का जन्मस्थान होने के कारण नविलूरु का नाम कीर्तिभवन में उत्कीर्णित हुआ है। इस जैन संघ का नाम भी इसी स्थान पर आधारित नविलूरु जैन संघ रखा गया है। इस संघ का उद्भव सातंवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में हुआ और उसके बाद इस स्थान ने सारे राज्य तथा संप्रदाय के भीतर अपना प्रभाव बनाए रखा है। संक्षेप में 700 के प्रारंभ में नविलूरु संघ की ऐसी विशिष्टता थी कि उसने प्रारंभिक छः शिलालेखों में अपना स्थान अंकित कर लिया था। (EC. VOL. II. (R) NOS. 38 (35), 112 (97), 117 (102), 123 (108), 132 (114) : EC.VOL. XI.NO.118). नविलूरु संघ का नविलुरु गण था जो समूह का एक दल (शाखा) था और आजिगण उसका उपभाग था। नविलूरु के नाळगामुंड, गोविंदपाडी (गंगावाडी क्षेत्र) के बेळगोळ के शिलालेख में आते है। पुष्पसेनाचारी, राजमतिकति, अनंतमतिगंति, बाळांबाकांटि और उसके शिष्य वुजक्का कुछ मुनि तथा साध्वियाँ (माताजि) ने शांति से सल्लेखन का व्रत धारण कर तथा हर प्रकार के अन्न से परहेज रखकर अपनी अंतिम सांस चंद्रगिरि की चोटी पर लेने हेतु नवलूरु से कळ्वप्पु (श्रवणबेळगोळ) तक नंगे पैर यात्रा की थी। नविलुरु यह नाम दो शब्दों के जोड से बना है...नविल तथा उरुा निविलु का अर्थ है मोर और उरु का अर्थ है गांव अर्थात मोरों का गाँव। ये दोनों शब्द कन्नड भाषा के हैं। कळ्वप्पु के एक पुरालेख के प्रारंभ में स्थान का उल्लेख नविलूरु संघ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org