________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 73 7. एक शिलालेख जो कि विक्रमादित्य के शासनकाल के पाँचवें वर्ष के ताम्रपत्र का ही प्रतिरूप है, में जैन-मुलसंघ देवगण को अनुदान मिलने का उल्लेख है। शके 608 का यह रिकार्ड पांचवें विभाग में दिए गए संदर्भ के समान है। अन्य विवरण की चर्चा इस पुस्तक में अन्य जगह पर की जाएगी। 8. बिक्किराणक (विक्रमादित्य द्वितीय) ने शंख जिनालय के परिसर में स्थित जिनभट्टारक मंदिर तथा दानशालाओं को सेमबोळाल ग्राम (श्याबाळ, शिरहट्टी तालूका) दान में दिया था। राजा विक्रमादित्य रणवलोक का संक्षिप्त रूप विक्किरोणक था। 9. कीर्तिवर्म द्वितीय के अधिनस्थ कलियम्म गामुंड ने ई.स.751 में जेबुळगेरि में चेदिया बनवाया था। चालुक्यों के शासनकाल का यह संभवतः अंतिम .. जैन मंदिर था। ___10. विजयादित्य ने, अपने शासनकाल में 34वें वर्ष में रक्तपुर (किसुवोळाल) में रहते समय, लगभग 729 के आसपास उदय पंडित देव को एक ग्राम : दान में दिया था। पुलिगेरे के ये धर्मगुरु, पूज्यपद वंशक्रम के शिष्य, मूलसंघ देवगण के थे। उसने विजयादित्य तथा उसके पिता विनयादित्य से. आदर सम्मान प्राप्त किया था। 11. रविशक्ति, सेंद्रक सामंत राजाओं ने 50 निवर्तन की जमीन 600 में किरुव केर के शांतिनाथ जिनालय को दान में दी थी। संभवतः मन्नत की कार्यसिद्धी के उपलक्ष्य में दान दिया होगा। 12. शंख जिनालय के साथ ही पुलिगेरे के निकट का धवल जिनालय भी राज परोपकार के कारण समृद्ध हुआ था। 733-34 में वीरयोद्धा सम्राट विक्रमादित्य ने धवल जिनालय को दान दिया था। संभ्रान्त जैन संघ ऐतिहासिक दस्तावेज तथा भोजपत्रों पर लिखी पांडुलिपियों का महत्व समझता था। अतः जहाँ भी उन्होंने प्राचीन दस्तावेजों का ह्रास होते देखा, उसकी प्रतिलिपि बनाकर रखी। ये पुरालेख जैन धर्म-गुरु द्वारा दिए जाने वाले सहयोग का प्रमाण है, जिन्होंने जंगलों तथा पहाडों की एकांत गुफाओं में अपना आध्यात्म जीवन व्यतीत किया था। जैन धर्म लोगों के प्रेम स्नेह तथा तत्कालीन शासकों के समर्थन से स्थापित हुआ और मुक्त संरक्षण का अनुभव लिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org