________________ 74 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य धर्म तथा धार्मिक केंद्रों के साथ पहचान बनाए रखने के लिए उदार दान तथा अपनी संपत्ति का सहभाजन एक गंभीर चिंता का विषय था। साथ ही प्रभू की निस्वार्थ तथा असीम उदारता, जीवन में गुण अर्जित करना ही था। चालुक्य राजा पश्चाताप से शांत रहने वाले सरदार नहीं थे। बल्कि वे वीरोचित एवं श्रेष्ठ थे। कला, वास्तुकला तथा ऐसी सृजनात्मक कलाओं के प्रति राजाओं की तीव्र रुचि क्यों थी इसकी चर्चा आगे के अध्यायों में की जाएगी। ___कर्नाट देश, बल्कि कुंतल देश का जैनों के साथ दृढ संबंध इस युग के प्रारंभ से ही था। अतः हर क्षेत्र में जैन संघ में जैन संघ फूलता फलता समृद्धी करता गया। राज प्रतिष्ठित, राजाओं तथा रानियों ने खुलकर जैन धर्म से मित्रवत व्यवहार किया और इन प्राचीन मत के अभिरक्षक होने का आनंद लिया। रविकीर्ति ने अपने आश्रयदाता की वंशावली तथा उपलब्धियों को अपनी सृजनात्मक प्रतिभा की काव्यात्मक उत्कृष्टता से इतिहास को संकलित किया। पुरालेखों के विश्व में उसका ऐहोळे शिलालेख उपयुक्त स्थान प्राप्त करता है। ___ चालुक्यों के युग का एक मात्र ज्ञात कवि तथा कर्नाट के इतिहास का प्रथम . राजकवि, जिसने (सव्यसाची) प्रवीणता तथा कवित्व को समान रूप से सहजता से प्राप्त किया था, पुलकेशी का मित्र, मार्गदर्शक तथा दार्शनिक था। साथ ही साथ वह दण्डनायक तथा मंत्री भी था। इस प्रकार रविकीर्ति एक साथ बहुत कुछ था, इससे यह ज्ञात होता है कि उसका कितना सम्मान किया जाता था और शासकों का उसकी योग्यता तथा खरे व्यक्तित्व पर कितना विश्वास था। पुलकेशी ने एक ऐसा योग्य उदाहरण प्रस्तुत किया कि उसके बाद के राजाओं ने उसका अनुकरण किया। यहाँ से सूत्र लेते हुए तथा इस प्रारूप का विस्तार करते हुए परवर्ती शासक जैसे अरिकेसरी द्वितीय (930-55) तैलप्पा द्वितीय (973-97) जगदेकमल्ल जयसिंह (1015-42) तथा वीरबल्लाळ (1173-1220) आदि ने क्रमशः पंप, रन्न नागवर्म तथा जन्न को अपना राजकवि तथा सेनानायक बनाया। सृजकों को शासकों तथा अमीरों से समानरूप से उपहार तथा दान प्राप्त करने का विशेषाधिकार था। __ मंदिर निर्माण की गतिविधियों को विक्रमादित्य प्रथम के पुत्र विनयादित्य के शासनकाल में बढावा मिला। प्राचीन त्रिकुटाचल मंदिर, जो त्रिमूर्ति को समर्पित किया गया है। विनयादित्य की प रानी महादेवी की खातिर लोकादित्य, एळा अरस ने अलमपुर में स्वर्ग ब्रह्म देवालय की स्थापना की। चालुक्यों के वंशक्रम में विजयादित्य का शासनकाल (696-733) सबसे दीर्घ शासनकाल रहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org