________________ 72 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य वे यति जीवन के तत्वों का कड़ा पालन करें। इन विद्वान आचार्यों ने अपने जीवनकाल में जैन परंपरा की भव्य-दिव्यता देखी थी। सम्राट का दरबारी सलाहकार तथा आध्यात्मिक गुरु होना अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रभावी कार्य था जो कि एक जैन त्यागी के लिए अपने अंतिम अनुशीलन में सतकर्म ही था। ___कई धर्मगुरु मूलसंघ के थे। कित्तुर संघ नविलुरु संघ, पुन्नाट संघ, सेन संघ तथा यापनीय संघ का भी अभिलेखों में उल्लेख किया गया है। यह सारी शाखाउपशाखाएँ राज सहायता तथा गृह-परिवारों के कारण समृद्ध हुई थी। हालाँकि राज कवि रविकीर्ति को यापनीय संघ का उपासक माना जाता था। लेकिन अभी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि आदित्य तथा देवेन्द्र पंडित ने सेनवार प्रमुखों से गोसास (गोदान) लिया था जबकि जयदेव पंडित पुलिगेरे के शंख जिनालय का प्रभारी था। यह सर्वविदित तथ्य है कि प्राचीन काल में धर्म के विकास के लिए राज समर्थन आवश्यक था। चालुक्य, जैन समर्थन में सक्रिय थे। जैन संघ के साथ चालुक्यों का संबंध तथा उनकी सक्रियता संक्षेप में निम्नलिखित है। 1. पुलकेशी द्वितीय ने राजकवि का समर्थन किया, जिसे राजवंश का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है। 2. पुलकेशी के सामंत राजा दुर्गशक्ति ने 500 निवर्तन की जमीन लक्ष्मेश्र्वर के नेमिनाथ की स्थायी पूजा हेतु दी थी। 3. जिन का कट्टर उपासक कीर्तिवर्म द्वितीय ने जैनों के प्रचार प्रसार के लिए प्रचुर मात्रा में नीधि दी थी। 4. जैन धर्म में दीक्षित विजयादित्य ने शंखजिनालय में प्रार्थना हेतु कद्दम ग्राम दान में दिया और इसे प्राप्त करनेवाला था उदयदेव पंडित उपनाम राजगुरू निरवदय पंडित। 5. विनयादित्य ने मूलसंघ देवगण के जैन भ ारक ध्रुवदेवाचार्य को हडगिले (शिरहट्टी तालूका) ग्राम उपहारस्वरूप दिया था। 6. राजकुमारी कुंकुम महादेवी ने पुलिगेरे में आनेसेज्जया बसदी का निर्माण किया था। उसके बड़े भाई विजयादित्य ने गुडिकेरे ग्राम (शिग्गाँव तालूका) दान में दिया था। पुरालेखिय डाटा के अनुसार आनेसेज्जया बसदी को प्रचुर मात्रा में निधियाँ मिली थीं तथा उसे राजप्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org