SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 70 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य में किया गया था। ग्रामप्रमुख गामुंड तथा करणों के द्वारा आठ मत्तर की जमीन प्रार्थना के लिए जिनेंद्र भवन को दान में दी गई थी। .. ___वाटग्रामपुर, आधुनिक वाडनेर (महाराष्ट्र, नासिक जिला, मालेगांव तालुका) पूर्वी चालुक्यों से लेकर परवर्ती चालुक्यों तक के काल से सातवीं सदी से बारहवीं संदी तक जैनों का प्रमुख केंद्र के रूप मे पनपा था। छठी सदी में बनाई गई धाराशिव की छः जैन गुफाएं बादामी तथा ऐहोळे की जैनगुफाओं से मिलती ?जुलती या समकालीन सी लगती है। आठवीं सदी के पूर्व अकोला तथा पुणे जिले की अंबिका की प्रतिमा को मिलाकर 27 कांस्य की प्रतिमाओं का किया गया संचय और सातंवीं सदी की खुदी हुई कांस्य की प्रतिमा आदि साम्राज्य के उत्तरी भाग में जैनों की स्थिति के विश्वसनीय पुरातत्विय दस्तावेज हैं। ई.स.659 के पुरालेख की एक उक्ति किसुवोळल महानगरे विख्याते स्थित्व महानगर किसुवोळाल (लालनगरी) के महत्व को ही प्रतिबिंबित करती है। यह लाल नगरी (किसुवोळाल) प दकल के नाम से भी जानी जाती है।. ऐहोळे, बादामी तथा किसुवोळाल के आसपास का प्रदेश कई ऐतिहासिक . तथा अविस्मरणीय घटनाओं से महकता था। चालुक्यों के आने से पहले भी वह प्रदेश सातवाहनों तथा कदंबों की पैतृक संपति की गवाह रहा है। हाल ही में की गई खोजों में पाए गए इटों से बनाए जिनभवन के अवशेष पूर्वी चालुक्यों के काल के होंगे, ऐसा माना जाता है। पट्टदकल के विद्यमान जैन नारायण मंदिर के पीछे का प्राचीन जिनभवन तथा कायोत्सर्ग की मुद्रा में खडे एक तीर्थंकर की प्रतिमा की खोज यह निश्चित करती है कि इस प्रदेश में जैनों को समाज में परमादर का स्थान प्राप्त हुआ था। इन ऐतिहासिक घटनाओं के मद्देनजर विद्यमान प्राचीन जैनमंदिरों को अगर क्रम से रखा जाय तो सबसे प्रथम आता है, हलसी (पलसिका) का पत्थरों में बना जैन मंदिर जो पांचवीं सदी के उत्तरार्ध में बना था। उसके बाद आता है छठी सदी में उत्खनन के दौरान प दकल में पाया गया ईटोंवाल मंदिर और ऐहोळे का मेगुडी (634) पुलिगेरे का शंख जैनमंदिर भले ही वे आज भी विद्यमान है किंतु उनका कई बार नवीनीकरण किया गया था और जो क्रमशः छठी तथा सातवीं सदी के थे। ___ चालुक्यों के राजपरिवार का शंख जिनालय मंदिर जिसके दरवाजों की चौखटों तथा स्तम्भों की नींव के लिए मात्र पत्थरों का इस्तेमाल कर ईटों से बनवाया गया था, नष्टप्राय कर दिया गया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy