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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 69 को दी गई थी। हूलि, एक जैन पीठ के रूप में लगभग 700 वर्ष छठी सदी के उत्तरार्ध से 12वीं सदी के अंत तक फूलता फलता रहा। अर्थात् बादामी चालुक्यों से उसकी शुरूआत हुई तो कल्याण चालुक्यों तक वह नष्ट होने की कगार पर था। उपर्युक्त कांस्य पत्र के पुरालेख का प्रारंभ ही शांतिनाथ जिन के उद्घाटन से होता है और श्रीनीधि तथा अभयनंदी परलूरु संघ तो गुरुओं के नामों का उल्लेख करते हैं। चालुक्यों ने पाषाण-संरचना का विशेष समर्थन किया। उन्होंने एक अवधि तक जिनेन्द्रभवन को शिलाओ में ही देखा जब कि प्रार्थनागृहों का निर्माण करने के लिए ईंट, चूना तथा लकड़ियाँ कलाकारों और भक्तगणों को प्रिय थे। ___ परवर्ती कदंबों के शासनकाल के दौरान निर्गंठ के मंदिर निर्माण की विकास प्रक्रिया में और गति पायी। परिणामस्वरूप स्वतंत्र भक्ति की परिकल्पना का उद्भव हुआ। जैनों को राज्यसमर्थन मिलने के कारण उन्होंने आगे छलांग लगाई जिससे कला तथा साहित्य के क्षेत्र में गतिविधियां होने में सहायता मिली। यक्ष तथा यक्षी की परिकल्पना ने एक नया आयाम दिया और जिससे जैनधर्म में एक रोचक प्रवृत्ति का निर्माण हुआ। देवी पद्मावती (अर्हत पार्श्व की जिनशासन देवता) पूर्वी कदंबों की ईष्ट देवता थी। पूर्वी कदंबों ने छठी सदी के प्रारंभिक वर्षों में अपने निवास के पास ही कल्लीलि में एक प्रार्थना मंदिर बनवाया था। संभवतः देवी पद्मावती का यह सबसे पुराना मंदिर रहा होगा। लगभग इसी दौरान वातापी के चालुक्यों का आगमन हुआ और जिनके लिए देवी अंबिका प्रिय आराध्य देवता बन गई और रविकीर्ति ने इस देवी को साम्राज्य में लोकप्रिय बना दिया / ___प्रार्थना मंदिर निर्माण करने के अलावा दान देने के लिए दानशालाओं का निर्माण किया गया और उनको प्रमुख जिनालयों से जोडा गया। दानशाला प्रवर्त्तनार्थम (SI.XX.4. AD:683 हडगिले ग्राम) दानशाला निमित्तं नगरद दक्षिण श्यामदिशी सेंबोळल नाम ग्रामं सर्वबाधा परिहारं द्ददद (ibid. No. 5. AD. 723) . दानशाला निर्वहनार्थम कड्डमग्रामा (ibid 6.730) धर्मगामुंड निर्मापित जिनालय दानशालादि संवृद्धय विज्ञापितेन (KI. vol No.3. AD. 750 . आडूर. p. 7) 'जिनशालाओं के निर्माण करने तथा उसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय इसी युग को जाता है। आडूर, हडगिले तथा पुलिगेरे में बनाई गई दानशालाएँ बहुत संपन्न थीं। जिनायतन तथा दानशालाओं का निर्माण धर्मगामुंड के द्वारा ऐहोळे के पास आडूर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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