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________________ 68 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य थावह अनैतिहासिक इसलिए था क्योंकि पूर्वानुमान था कि सातवाहन अथवा शालिवाहन राजा ने इस काल गणना का प्रारंभ किया था और यह ऐतिहासिक घटना के उचित स्त्रोत होने का संकेत करता है जो उसके संशोधित नामकरण का आधार यह घटना निश्चित ही विदेशी शकों पर सातवाहन राजा के विजय की रही होगी। इसका आरोप ‘हाल' राजा पर नहीं लगाया जा सकता। सातवाहनों के इतिहास के पुनः रचना के अनुसार 'हाल' का सेनाप्रमुख राज परिवार से संबंधित नहीं था और पराक्रमी योद्धा तथा सेनापति की अपेक्षा एक विद्वान तथा लेखक था। इस प्रकार नए संशोधित शालिवाहन संवत्सर के साथ एक ऐतिहासिक महान व्यक्ति गौतमपुत्र शतकर्णी के पूर्वानुमान के आधार पर संबंध जोडना न ऐतिहासिक रूप से उचित होगा न हाल के प्रति न्यायसंगत होगा। अतः यह बात हमें स्पष्ट रूप से ध्यान में रखनी होगी कि प्रारंभिक काल गणना का उद्भवं शक शासन से हुआ था न कि गौतम पुत्र शतकारणी और ना ही सातवाहन राजवंश के अन्य किसी राजा ने ऐतिहासिक घटना के रूप में काल गणना की सचमुच स्थापना की थी। (A History of Karnataka: (eds): Desai P.B. Srinivas H. Rithi B.R, Gopal. (2nd revised): 1981:87: 89). इस कालावधि में प्रमुख जैन प्रार्थना मंदिरों के समूहों को अभिलिखित किया * गया है। परलुरु तो आधुनिक हळ्ळूरु के नाम से जाना जाता है जो बागलकोट जिले के पर्व में 20 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह कभी जैनों के प्रधान केंद्र के रूप में फूला फला था। प्राप्त साक्ष्य उसकी प्राचीनता और उसके पूजनीय तथा श्रेष्ठ मठों के अस्तित्व में होने की गाथा कहते हैं। नविलूरु संघ ने सातवीं सदी के प्रारंभ से कार्य करना प्रारंभ किया था। जबकि परलुरु संघ उससे भी प्राचीन है और वह पांचवीं सदी से ही सक्रिय था। परलुरु संघ से निकली एक शाखा को मृगेशवर्म (475-80) से राज अभिज्ञान तथा प्रचुर मात्रा में अनुदान भी मिला था। पांचवीं सदी के शिलालेख में उसे बहत परलूरु कहा गया है। चालुक्यों के शासनकाल में इस स्थान ने विस्मयकारी जैन पीठ के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका निभायी थी। परलूरु बादामी से बहुत दूर नहीं था। राजधानी बादामी के दक्षिण पश्चिम में नविलूर था जब कि पश्चिम में हूलि। ___ मंगलेश के शासन काल के कांस्य पत्रों में यह अभिलिखित है कि कनकशक्ति के युग में रविशक्ति के द्वारा 50 निवर्तन जमीन किरुव केरे के शांतिनाथ जिनालय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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