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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 67 चालुक्यों ने अपने अभिलेखों में करना शुरु किया था और इसके दो उदाहरणों का उल्लेख उचित होगा, बादामी के एक पाषाण के पुरालेख में शक 465 का उल्लेख हुआ है और जो पुलकेशी प्रथम द्वारा निर्मित किले का वर्णन करता है और द्वितीय है... ऐहोळे में पुलकेशि द्वितीय की प्रशस्ति, जिस पर दो युगों का उल्लेख है, कलि 3735 तथा शक 556. / कन्नड देश में, छठी से तेरहवीं सदी तक पुरालेखों में शक वर्ष, शक काल, शक-नृप-काल, शक-नृप राज्याभिषेक संवत्सर आदि का उल्लेख अक्सर पाया गया है। विद्वान कवि रविकीर्ति इस तीथि का इस प्रकार उल्लेख करता है कि, शक राजाओं के अधिकारियों तथा तत्कालीन विद्वानों में शक युग के प्रति एक प्रकार की जागृति थी। तेरहवीं तथा उसके बाद की शताब्दी में विदेशी मुसलमानों द्वारा उत्तर भारत पर किया गया आक्रमण तथा कब्जा. विदेशी मल की काल गणनाशक गणना के प्रति विद्वदजनों में विरोधी प्रतिक्रिया का कारण बना। संभवतः इससे प्रतिष्ठान में सातवाहन का शासन तथा सातवाहन राजाओं की शक तथा अन्य विदेशियों पर विजय की पुरानी स्मृतियाँ जग गई होंगी। शक काल गणना, जो अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी थी, उसको उखाडा नहीं जा सका था। अतः उन्होंने इसी प्रकार की अन्य काल गणना का निर्माण किया और उसमें उन्होंने सातवाहन नाम जोड दिया। इसप्रकार, उसके बाद संशोधित कालगणना शालिवाहन शक का प्रचलन हुआ। ___ यह परिवर्तन मुख्यतः प्रतिष्ठान के जैन विद्वानों तथा ज्योतिषियों ने लाया था। इस प्रकार के नाम परिवर्तन के लिए न्यायोचित तथा युक्तिसंगत विवरण की आवश्यकता है। सातवाहन अथवा शालिवाहन राजाओं के द्वारा इसके उद्भव तथा स्थापना के पूर्वानुमान पर यह बात कही गयी थी। इसी के साथ साथ, पौराणिक कल्पित राजा शालिवाहन की कथा को बहुत ज्यादा महत्व यह कहकर दिया गया कि उसके पास चमत्कारी शक्तियाँ थी और उसने प्रतिष्ठान पर शासन भी किया था। जैन. परंपरा तथा दंतकथाएँ प्रतिष्ठानपुर के इर्द गिर्द बुनी गई थी जो सदियों तक जैन धर्म तथा जैनगुरुओं का केंद्र स्थान था। एक परंपरा के अनुसार सातवाहन राजवंश के एक महत्वपूर्ण राजा हाल ने जिन की शिक्षा तथा सिद्धान्त का लाभ प्राप्त किया था और प्रतिष्ठानपुर में कई जैन मंदिर बनवाए थे। परंपराएं हाल को शालिवाहन गणना का संस्थापक मानती हैं। शालिवाहन शक का संशोधित नामकरण अनैतिहासिक तथा ऐतिहिसिक दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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