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________________ 66 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य शासक शकों को विफल किया और एक नए युग का शुभ संकेत दिया। इस प्रकार वर्ष 57 लोकप्रिय विक्रमी शक गणना का प्रारंभ हुआ। इसके अलावा शालिवाहन शक संवत्सर, आंध्र कर्नाटक तथा महाराष्ट्र में ई.स. 78 चैत (युगादी) महीने से विशाल स्तर पर प्रचलित हुआ। कर्नाटक का इतिहास (A History of Karnataka) पुस्तक के विद्वान संपादक ने इस शक गणना को स्वीकृत करने के पीछे क्या कारण रहे थे इसका विस्तार से वर्णन किया है। __ पहले गुजरात-काठियवाड प्रदेश जो शक शासकों के राज्य में मिला हुआ था। जैनों का प्रमुख केंद्र था और सत्ताशक्ति इस धर्म के समर्थन में आगे बढ़ी। अतः जैन धर्मगुरु तथा विद्वान, जिनको इस कालगणना के प्रति आसक्ति निर्माण हुई थी, वे दक्षिण में, इस धर्म के प्रचार प्रसार में सक्रियता से लग गए। इसी के साथ इस धर्म का प्रसार करते समय, इस काल गणना के प्रति अनुकुल वातावरण भी उन्होंने ही निर्माण किया था। इस संदर्भ में, इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि जैन गुरु सिंहसुरि जिसने सुदूर दक्षिण कांचि में लोकविभाग कृति का निर्माण किया था। उसमें शक वर्ष 380 (अर्थात 458 ए.डी.) का उल्लेख किया है। दूसरा, पश्चिम मालवा के उज्जयनि को शक राजाओं के राज्य में मिलाया गया था, जो खगोलिय अध्ययन का प्रमुख केंद्र था। सदियों तक समय की कसौटी पर शक वर्ष गणना को कसा गया था और वह उस पर खरी भी उतरी थी। अतः खगोलिय गणना के लिए उज्जयनि के पंडितों ने इसे योग्य समझा। खगोलिय गणना के लिए इस गणना का चयन बाद में मगब्राह्मणों के रूप में आने जाने वाले वराहमिहिर जैसे शहरों के श्रेष्ठ खगोलज्ञ के द्वारा तथ्य के आधार पर और दृढ किया गया। ये मग-ब्राह्मण मूलतः मगि भ ारक थे, जो शक द्वीप अथवा सेष्टा (शकों क देश परशिया) के मूल प्रवासी थे। बादामी के चालुक्य सम्राट, जिन्होंने विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था, दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में शक युग का प्रचार करने वाले प्रमुख माध्यम थे। इस समय तक जैन धर्म कर्नाटक में पुरी तरह से स्थापित हो चुका था और यह धर्म तथा उसके धर्मगुरु अपने अन्य धार्मिक विचारधाराओं के साथ चालुक्य राजाओं से समर्थन पा चुके थे। इसके दो प्रमुख उदाहरण है ...एक, बादामी की जैन गुफाएँ तथा पुलकेशी द्वितीय का आश्रित प्रसिद्ध जैन कवि तथा विद्वान रविकीर्ति जिसने पुलकेशि द्वितीय की प्रशस्ति की रचना की थी। शक युग का उल्लेख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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