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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 61 जगह ली। यापनीय संप्रदाय पूर्णरूप से फूला फला और परवर्ती चालुक्यों के शासनकाल में अपनी चरम सीमा पर पहूँचा और विडंबना यह कि राजसी चालुक्यों के पतन के साथ हमेशा के लिए यह संप्रदाय लुप्त हुआ। ___ यापनीय मुनि चैत्यवासी साधू बन गए। उनके आश्रमों तथा प्रार्थनागृहों के प्रबंध के लिए कदंब राजा मृगेश्वरम तथा हरिवर्म ने पांचवीं सदी में विशाल भूभाग तथा ग्रामों का दान किया। गंग राजा अविनीत 469-529 गंग राजा ने आय का प्रबंध किया, उपजाउ जमीन और पुल्लुर में मंदिर हेतु घर दिया जहाँ यवनिका (यापनीया) संप्रदाय के साधू रहने लगे थे। . संक्षेप में प्रांत में स्थित जैनधर्म के विभिन्न संप्रदाय तथा रूपों का सहअस्तित्व तथा प्रसार ने उसका विशद विकास किया। यह सब युगीन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में परिवर्तन ले आया, जिसमें जैनधर्म वास्तव में दृढता से स्थापित हुआ और पुरी तरह से समृद्ध हुआ, उसे निधियाँ तथा जमीन दान रूप में प्राप्त / हुई। मठवासियों आदर्श ने सांसारिकता के प्रति आसक्ति का मार्ग खोल दिया और इस प्रकार मठवासी भट्टारकों का उदय हुआ, जिन्होंने विशेष धर्मप्रांत के प्रमुख रूप में कार्य किया। मठवासी पद्धति के परिवर्तित परिदृश्य में आश्रम, मंदिर तथा 'अन्य स्थायी इमारतें असाधारणतः बढ गई और धर्मनिष्ठा को उनके विशेष मठों की ओर आकर्षित करने के लिए एक दूसरे से स्पर्धा करने लगे थे। __ जैनधर्म के पूर्वी मठों में ऐहोळे, कल्लवप्पू, किसुवोलाल का समावेश था। शासन पद्धति के भव्य शहरों में कुपण (कोपन, कोप्पळ), पलासिका, पोम्बुलच (पोम्बुरच, होबुज) हुमच, पुलिगेरे, पुन्नाटा आदि शहरों ने चालुक्यों के इतिहास में संप्रदाय के महत्वपूर्ण तथा मजबूत संघ के रूप में स्थान पाया। राजप्रतिबद्धता संपूर्ण तथा दिल को छूने वाली थी। बादामी महल के संरक्षण के कारण निग्रंथ की गतिविधियाँ प्रबल तथा विस्तृत हुई थी। जैन संप्रदाय इस धरती का अत्यंत प्राचीन धर्म है, विशेष रूप से उसकी प्राचीनता स्व का कायाकल्प' तथा 'पौरूषेय' आज भी जीवित है। जिसके लिए चालुक्यों की सहायता के प्रति आभारी होना चाहिए। यह युग जैन संघ के लिए महिमामयी तथा वैभवशाली रहा जिसने साहित्य तथा वास्तुकला पर अपनी छाप छोडी। - संघ के गणों तथा गच्छों का नाम जैन-पीठ के आधार पर रख दिए गए थे। पुन्नाडु एक प्रदेश था जो मैसूरु तथा मडिकेरी जिलों के मध्य दोआब प्रदेश था। आदिकदंब राजा मयुराशर्मा (325-45) के शिलालेखमें यह कहा गया है कि पुन्नाडु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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