________________ 60 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य धर्मगुरूओं तथा उपदेशकों ने निरंतर सौहार्दपूर्ण संपर्कों से, अपने प्रवचनों से प्रार्थनागृहों का निर्माण कर गैरपादरी वर्ग को जीत लिया था। इस प्रक्रिया में साधु संतों ने जैन धर्म के सिद्धान्त तथा उसके प्रयोग एवं उसकी आध्यात्मिक संस्कृति में विशिष्ट योगदान दिया। समकालीन अन्य धर्मों के प्रति समरसता तथा स्यादवाद से विशेषीकृत थी। __ जैनधर्म ने अपनी साख बड़े तथा समृद्ध शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बनाए रखी थी। चाहे जैन धर्म को निम्न दर्जे का भी सहयोग था किंतु इस मत को मुख्यतया व्यापारी समुदाय, राजपरिवार तथा अधिकारियों का समर्थन था। श्रेष्ठी व्यापारी, देशी विदेशी हर तरह के वस्तुओं का व्यापार करते थे और सुदुर प्रदेशों में भी आते जाते थे। नायाब तथा मूल्यवान वस्तुओं की निर्यात आयात करते थे। व्यापारी वर्ग शक्तिशाली लोकप्रिय तथा सत्ताधारी राजाओं से मान्यता प्राप्त थे, इन्होंने उनको पट्टनशेट्टी तथ राजश्रेष्ठी जैसे नाम दिए थे। फिर परवर्तियों ने राजदरबार में सम्मान का स्थान भी लिया था। ऐहोळे के 500 व्यापारी समुदाय के लोगों ने सामाजिक सम्मान भी प्राप्त किया। ___ अविच्छिन्न बल प्राप्त करने तथा सांस्कृतिक क्रांति के कारण जैन धर्म सैद्धान्तिक विचार विनिमय का केंद्र बना। आध्यात्मिक चर्चा के परिणाम स्वरूप धर्म के अंतर्गत ही वर्तमान युग की प्रारंभिक सदी में विभिन्न शाखाओं तथा स्कूलों * का निर्माण हुआ। निर्गुठों की मठवादी पद्धति से प्रादेशिकता तथा ग्रामीणता का प्रचुर प्रसारण उत्पन्न होने लगा। रूपातंरण के प्रथम खंड को यापनीय संघ कहा गया था, पांचवीं सदी में एक मार्मिक तथा हिला देने वाली सी भूमिका निभाने पहँचा। यापनीय संघ ने श्वेतांबर तथा दिगंबरों के मध्य स्थान ग्रहण किया। विडंबना यह है कि दोनों परवर्ती संघों ने यापनीय को विधर्मी समूह कहकर खंडन किया। परंपरा से सामंजस्य रखते हुए तथा साहित्यिक साक्ष्य के आधार पर यापनीय संघ का उदय कर्णाट में ईसा की दूसरी सदी में हुआ। इसकी जड़ें इस उपजाऊ जमीन में गहरी गड गई थी। बनवासी के पूर्वी कदंबों के राजा ही पहले थे जिन्होंने संघ की छोटी बडी तथा दृढ शाखाओं समेत उसका सम्मान किया तथा उसे समान स्तर का उच्च पद दिया। चालुक्यों ने भी समान नीति अपनायी और यापनीय संघ को दृढ किया। बाद में इस संघ का राष्ट्रकूटों ने पोषण किया, जिन्होंने चालुक्यों को हटाकर अधिकार ग्रहण किया था और फिर बाद में एक बार कल्याण के चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org