________________ 9: सल्लेखना स्वेच्छा से धारण करनी चाहिए। किसी के दबाव में आकर अथवा स्वर्ग आदि के सुखों की प्राप्ति की इच्छा से सल्लेखना नहीं करनी चाहिए। 10. सल्लेखना करने वाला साधक मन में यह नं सोचे कि मेरी सल्लेखना - लम्बे काल तक चले जिससे लोग मेरे दर्शन हेतु उपस्थित हो सकें, मेरी प्रशंसा हो; और वह यह भी न सोचे कि मैं शीघ्र ही मृत्यु का वरण कर लूँ। सल्लेखना का साधक न जीने की इच्छा करता है, न मरने की। वह तो सदा समभाव में रहकर सल्लेखना की साधना करता है। अर्धमागधी आगम साहित्य में समाधिमरण ___ आचारांग एवं उत्तराध्ययन दो ऐसे ग्रन्थ हैं जिनमें समाधिमरण के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण मिलता है। आचारांग के प्रथम श्रुत स्कन्ध का विमोक्ष नामक अष्टम अध्ययन विस्तार से समाधिमरण के तीन प्रकारों भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनीमरण एवं प्रायोपगमन की विस्तृत चर्चा करता है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र का पंचम अकाम-मरणीय अध्ययन भी अकाम-मरण और सकाम मरण (समाधिमरण) की चर्चा से सम्बन्धित है। उत्तराध्ययन के 34वें अध्ययन में भी समाधिमरण की चर्चा है जिसमें समय अवधि की दृष्टि से उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य- ऐसे 3 प्रकार के समाधिमरणों का उल्लेख है। दशवैकालिक के आठवें आचार्य-प्रणिधि नामक अध्ययन में समाधिमरण के पूर्व की साधना का उल्लेख करते हुए कषायों पर विजय प्राप्त करने का निर्देश हैं। इसीप्रकार स्थानांग सूत्र के चतुर्थ उद्देशक में मरण के विविध प्रकारों की चर्चा के प्रसंग में समाधिमरण के विविध रूपों का उल्लेख मिलता है। समवायांग में मरण के 17 भेदों की चर्चा है। भगवती सूत्र में अम्बड संन्यासी एवं उसके शिष्यों के द्वारा गंगा की बालू पर अदत्त जल का सेवन नहीं करते हुए समाधिमरण करने का उल्लेख पाया जाता है। उपासकदशा सूत्र में भगवान महावीर के 10 गृहस्थ उपासकों के द्वारा लिखे गये समाधिमरण और उसमें उपस्थित विघ्नों की विस्तृत चर्चा मिलती है। अन्तगडदशा एवं अनुत्तरोपपातिक दशा में भी अनेक श्रमणों एवं श्रमणियों के द्वारा लिए गए समाधिमरण का उल्लेख मिलता है। अन्तकृतदशा की विशेषता यह है कि उसमें समाधिमरण लेने वाले की समाधिमरण के पूर्व की शारीरिक स्थिति कैसी हो, इसका सुन्दर विवरण उपलब्ध है। उपांग साहित्य में औपपातिक सूत्र और रायपसेनीय में समाधिमरण ग्रहण करनेवाले कुछ साधकों का उल्लेख है, अर्धमागधी आगम साहित्य के प्रकीर्णकों में आतुर-प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, भक्तप्रतिज्ञा, संस्तारक, आराधना-पताका, मरणविभक्ति, मरणसमाधि एवं मरणविशुद्धि प्रमुख हैं। वर्तमान में मरणविभक्ति नामक प्रकीर्णक में उपरोक्त आठ ग्रन्थों को समाहित कर लिया गया है। प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) "2004