________________ से जन्म-मरण, पुनः जन्म-मरण, ऐसे चक्र में यह जीव चला आ रहा है। सबसे बड़ा दुःख जन्म का भी है, और मरण का भी। कुछ ग्रन्थकारों ने तो यह भी लिखा है कि जन्म के दुःख बहुत हैं। यह प्राणी मरण से भी इसीलिए डरता है कि अब जन्म लेना होगा और उन जन्म सम्बन्धी महान दुःखों की पुनरावृत्ति होगी। जो जन्म-मरण के चक्र से दूर होना चाहते हैं उन्हें अपना जीवन एवं मरण काल सुधारना चाहिए। मरण तो होना ही है तब पशु की मौत न मरकर जो वीरतापूर्वक धर्म साधनपूर्वक मरण करता है वह श्रेष्ठ मरण है। मरण वरदान हो सकता है यदि उस समय आत्मसाधना का पथ स्वीकार कर लिया जाय। एक कहावत है कि बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता। उस कहावत का अर्थ है कि बिना मरण के मुक्ति भी नहीं होती। मूलाचार के आधार पर तो श्रेष्ठ मरण 3 प्रकार का है1. बाल मरण 2. बाल पण्डित मरण 3. पंडित मरण। इनमें जो सम्यग्दृष्टि (असंयत) का मरण है उसे बाल मरण कहते हैं, क्योंकि वे सम्यग्दृष्टि होने पर भी असंयत होने से बाल अज्ञानी (अज्ञान) हैं। यहाँ यह प्रश्न नहीं उठाना चाहिए कि आगम में अन्यत्र सम्यग्दृष्टि को ज्ञानी लिखा है, यहाँ अज्ञानी. कैसे कहा? इसका कारण आचार्यों का विवक्षा-भेद है। वहाँ सम्यग्ज्ञान की अपेक्षा सम्यग्दृष्टि ज्ञानी है। यहाँ यह विवक्षा है कि सब कुछ जानते हुए भी हिंसादि से विरक्त नहीं है, अतः संसार को प्राप्त है, अतः उस अवस्था का मरण बाल मरण है। . दूसरा बाल-पण्डित मरण देशव्रती श्रावकों का है, क्योंकि वह एकदेश विरत होने से पण्डित (ज्ञानी) भी है और एकदेश अविरति होने से बाल (अज्ञानी) भी है। फलतः श्रावक का मरण बाल-पण्डित मरण है। तीसरां पण्डित मरण संयमी जीवों का है, जो सकल पापों, सकल परिग्रहों से विरत होकर देह त्याग करते हैं वह पण्डित (ज्ञानी) का मरण है। श्रावक (देशव्रती सम्यकदृष्टि) भी अन्त समय में यदि सर्व परिग्रह त्याग कर महाव्रत स्वीकार कर मरण (समाधिमरण) करता है तो वह भी पण्डित मरण कहा जायेगा। भगवान केवली का देहत्याग मुक्ति का कारण है, अतः उसे पण्डितपण्डित मरण की संज्ञा ग्रन्थकारों ने दी है। 3 या 4 प्रकार के मरणों की गणना श्रेष्ठ मरणों में है। इनमें प्रथम 3 तो स्वर्ग गति के हेतु हैं, पर चौथा पण्डित-पण्डित मरण मुक्तिगामी जीवों का ही होता है। यद्यपि बाकी सर्व साधारण संसारी प्राणियों का मरण भी मरण है, पर वह श्रेष्ठ नहीं है, अतः उसे बाल-बाल मरण भी ग्रन्थकारों ने कहा है। समाधिमरण के प्रकरण में उसका कोई स्थान नहीं है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि स्वयं बाल (अज्ञानी) है और असंयत होने से भी बाल (अज्ञानी) है। उनकी बाल-बाल संज्ञा है, अतः उनका मरण बाल-बाल मरण है।. 6000 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004