________________ 'समाधिमरण-पाठ' में कवि कहते हैं "मृत्युराज उपकारी जिय को, तन सौं तोहि छुड़ावै। नातर या तन बन्दीगृह में, पस्यो-पस्यो विललावै।।" सन्दर्भ :1. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 122 2. तत्त्वार्थसूत्र, 7/20-22 3. सर्वार्थसिद्धि, 7-21 4. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 7/22/14 5. सर्वार्थसिद्धि, 7/22 6. व्रतोद्योतनश्रावकाचार, 124 7. वसुनन्दिश्रावकाचार, 271-272 8. संस्कृत-हिन्दी-कोश, वामन शिवराम आप्टे, पृ. 882 9. तत्त्वार्थवार्तिक, 7/22/3 10. सिद्धान्त कौमुदी 3/1/16 11. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम सूत्र 7/17 12. पंचास्तिकाय 13. सर्वार्थसिद्धि, 7/22 14. सिद्धान्त कौमुदी, धातुसंख्या' 1835 15. तत्त्वार्थवार्तिक, 7/22/5 16. तत्त्वार्थसूत्र, 7/13 17. पुरुषार्थसिद्धि-उपाय 44 18. तत्त्वार्थवार्तिक, 7/22/9 19. वही, 177-179 20. वही, 7/22 एवं तत्त्वार्थवार्तिक, 7/22/8 21. सर्वार्थसिद्धि, 7/22 22. तत्त्वार्थवार्तिक, 7/22/11 23. वही, 7/22/12 का व्याख्यान 24. सागारधर्मामृत, 8/23 25. धवला 9/9/9/25 26. तत्त्वार्थसूत्र 7/20-22 27. पुरुषार्थानुशासन, 6/113 28. वही, 6/114-116 29. सागारधर्मामृत, 8/23 30. लाटीसंहिता, 232-233 31. पुरुषार्थानुशासन, 99-100 32. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 124-128 33. यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 863 34. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 130-131 35. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 175 36. यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 865866 37. लाटीसंहिता, 5/235 38. उमास्वामिश्रावकाचार, 463, श्रावकाचारसारोद्धार 3/351, पुरुषार्थानुशासन 6/111, कुन्दकुन्दश्रावकाचार 12/4 39. तत्त्वार्थसूत्र 7/37 40. मुक्ति पथ के बीज महा महोच्छव होड़ "मरता मरता जग मुआ, औसर मुवा न कोइ। कबीर ऐसे मरि मुवा, ज्यूँ बहुरि न मरना होइ।। जिस मरनै थे जग डरै, सो मेरे आनन्द। कब मरिहूँ, कब देखिहूँ, पूरन परमानन्द।। जीवन से मरना भला, जो मर जाने कोय। मरने पहले जो मरे, अज्जर अम्मर होय।। मरनौ भलौ विदेस कौ, जहाँ न अपनौ कोइ। माटी खाय जनावरा, महा महोच्छव होइ।।” -कबीर ग्रन्थावली 540 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004