________________ मृत्यु के गीत 6) रामधारी सिंह 'दिनकर' मृत्यु के गीत गाओ, अरे गाओ। अगर स्वर समर्थ है। क्योंकि मृत्यु के गायन के बिना जीवन के गीत का न अर्थ है। मृत्यु के गीत मरने के गीत नहीं हैं गीत हैं वे सबसे लम्बी सफर के ! उस अनजाने देश के गायन, जहाँ आदमी को जाना पड़ता है मर के दुनिया से जाने के समय आत्मा क्या छोड़ती क्या लेती है? जिसे सब मृत्यु कहते हैं वह उसे कैसे दिखाई देती है परतों पर परतें अन्धकार की और आत्मा उनके भीतर प्रवेश करती है प्याज के छिलकों के समान अन्धेरे पर अन्धेरा है। मरने पर भी सृष्टि का अर्थ आसानी से नहीं खुलता सत्य को छिपाए हुए तिमिर का घेरों पर घेरा है सभी परतों के पार अन्धकार के नीचे अचल में वह जगह है जहाँ विस्मृति विराजती है प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 0055