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________________ समाधि और सल्लेखना ___ उपाध्याय निर्णयसागर जिस प्रकार एक कृषक कृषि से उत्तम फसल प्राप्त करने के लिए परिश्रम करता है, विद्यार्थी वर्ष भर अध्ययन करके परीक्षा में उत्तीर्ण होने एवं विपुल ज्ञान को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करता है, कुशल व्यापारी का व्यवसाय में किया गया समस्त श्रम विशेष धन लाभ के लिए होता है, देश-भक्ति में समर्पित एक नौजवान सैनिक का शस्त्र-अस्त्र-प्रशिक्षण व विभिन्न व्यायाम आदि कार्य देशरक्षा व युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए होता है; उसी प्रकार एक सम्यग्दृष्टि भव्य जीव का सम्यक् पुरुषार्थ उत्तम समाधि को प्राप्त करने के लिए ज्ञान, ध्यान व संयम रूपी धन की विशेष उपलब्धि के लिए, कर्मों से विजय प्राप्त कर संसार का अन्त करने के लिए होता है। वह सम्यग्दृष्टि भव्य जीव सर्वप्रथम सम्यक्त्वाचरण चारित्र का परिपालन करता है। सप्त व्यसन का त्याग, अष्ट मूल गुणों का पालन, सम्यक्त्व के आठ अंगों का पालन करना एवं शंकादि पच्चीस दोषों का परिहार तथा सम्यक्त्व में कांक्षादि अतिचार नहीं लगाना, यही सम्यक्त्वाचरण चारित्र है। इसके उपरान्त अणुव्रती बन श्रावक की दर्शन प्रतिमा आदि ग्यारह प्रतिमाओं व बारह व्रतों (पाँच अणुव्रत+सात शील व्रतों) का पालन करता है अथवा अहिंसादि महाव्रतों का यावज्जीवन परिपालन करता है। भव्य जीव द्वारा यह सब साधना, बोधि (रत्नत्रय) एवं समाधि की प्राप्ति के लिए की जाती है। वह श्रावक प्रारम्भ से ही निरन्तर उत्तम समाधि की भावना भाता है। सल्लेखना व्रत का परिपालन सल्लेखना की विधि में दक्षता, कुशलता, निस्सीम समत्व भाव को प्राप्त करने के लिए व इन्द्रियों व मन पर नियन्त्रण करने के लिए करता है। समाधि और सल्लेखना दोनों एक नहीं हैं, दोनों भिन्नार्थक हैं। समाधि का अर्थ करते हुए आचार्य भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी जी नियमसार में कहते हैं “वयणोच्चारणकिरियं परिचत्ता वीयरायभावेण। जो झायदि अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स।।” –नियमसार, 122 1400 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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