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________________ आचार्य वादीभसिंह लिखते हैं “कृतः सर्वांग सौम्येऽपि केनचित् कश्चिद ह्येते। मह्यते कोऽपि पक्ष्यादिर्भक्षकैरपि रक्षितः।।" -आचार्य वादीभसिंह, स्याद्वादसिद्धि, 1.5 क्या कारण है कि सर्वांग सुन्दर होने पर भी कोई किसी के द्वारा ताड़न-वधबन्धनादि को प्राप्त होता है और कोई शुक-सारिकादि पक्षी जीवहिंसक व्यक्तियों से भी रक्षित एवं बड़े प्रेम से पाले-पोसे जाते हैं, अर्थात् मनुष्य सर्वथा हिंसक नहीं है। पशुवधजीवी व्याध और कसाई भी अपने परिवार की हिंसा नहीं करते। वे अपने गृह-पशुओं (गाय, भैंस, कुत्ता) तथा पालित शुक-सारिकादि को भी नहीं मारते। इस तरह यह सहज ही सिद्ध है कि अहिंसा का बीज उनमें मूलरूप में विद्यमान है। 'यथा व्याघ्री हरेत् पुत्रान दंष्ट्राभिर्न च पीडयेत्' सिंहनी हिंसक होकर भी अपने शिशु-सिंहों को मुँह से उठाकर ले जाते समय दंष्ट्रा (दाँतों) से पीड़ा नहीं पहुँचाती। इस दृष्टि से एक-देश में हिंसक प्रतीत होनेवाले जीव भी कथञ्चित् दूसरे देश में अहिंसक हैं। मृत्युमहोत्सव - संसार से विदा | __ रवीन्द्रनाथ टैगोर मिल गई आज. छुट्टी मुझको, इस जग से भाई जो असार / जाता हूँ मुझको विदा करो, स्वीकार करो यह नमस्कार / / मेरे घर की यह ताली लो, अधिकार सभी मैं रहा छोड़। करता हूँ अन्तिम मृदु विनती, जाता हूँ निश्चय नेह तोड़।। चिरकाल पड़ौसी बने रहे, हम तुम सब मिलकर रहे साथ। मैं. दे. न सका उतना तुमको, जितना कुछ मेरे लगा हाथ।। दिन निकला दीपक शान्त हुआ, जिससे होता था शुचि प्रकाश। मेरे ही घर के कोने में, वह आज नहीं है रश्मिराश / / अब मुझे बुलावा आया है, जाने दो मुझको शीघ्र पार। जाने को मैं भी प्रस्तुत हूँ, लो मेरा अन्तिम नमस्कार / / . प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 90 13
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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