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________________ 13 मृत्यु की अवधारणा भारतीय दर्शन के परिप्रेक्ष्य में - रघुनाथ गिरि भारतीय दर्शन की दृष्टि से जब किसी सिद्धान्त, मान्यता या अवधारणा का विवेचन प्रारम्भ किया जाता है तब सर्वप्रथम यह प्रश्न उठता है कि क्या इस सिद्धान्त, मान्यता या अवधारणा की चर्चा भारतीय चिन्तन के मूल स्रोत ऋग्वेद में कहीं उपलब्ध है? यदि ऋग्वेद में इसकी चर्चा का प्रदर्शन कर दिया जाता है तो इससे यह सिद्ध हो जाता है कि वह सिद्धान्त या अवधारणा कोई नवीन अवधारणा नहीं है अपितु भारतीय चिन्तन के आरम्भ बिन्दु से ही उस अवधारणा पर विचार होता आ रहा है। इसलिए मृत्यु की अवधारणा पर विचार करते समय भारतीय चिन्तन के मूल स्रोत वैदिक संहिता से ही इस अवधारणा पर विचार आरम्भ किया गया है। ऋग्वेद संहिता के नासदीय सूक्त में यह उल्लेख मिलता है कि एक समय ऐसा भी था जब न असत् था और न सत् था, न मृत्यु थी और न अमृत था, न दिन था और न रात्रि थी, आदि।' इस कथन से मृत्यु के अस्तित्व का निषेध तो हो रहा है किन्तु मृत्यु की अवधारणा की पुष्टि हो रही है। इस कथन से तार्किक दृष्टि से एक और भी तथ्य उद्घाटित हो रहा है कि मृत्यु और जीवन में तार्किक विरोध नहीं है अपितु मृत्यु एवं अमृतत्व में तार्किक विरोध है। सांस्कृतिक विकास-क्रम में संवर्धित साहित्य के अवलोकन से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि मृत्यु से छुटकारा प्राप्त करने के लिए अमृत की खोज में देव, असुर एवं मानव सतत् प्रयत्नशील रहे हैं। अमृत की खोज के लिए देवताओं की प्रयत्नशीलता से यह स्पष्ट होता है कि देवता भी अमर नहीं है उन्हें भी मृत्यु का भय था। असुरों के साथ देवताओं का समुद्र-मंथन अमृत की प्राप्ति और अमृत के बंटवारे में देवताओं का कपटपूर्ण व्यवहार ... 1. नासदासीन्नो सदासीत् तदानीम न मृत्युरासीदमृतं न तहिं न रात्र्या अहं आसीत् प्रभेतः।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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