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________________ 86 मृत्यु की दस्तक पुनर्जन्म जीव के कर्मानुसार होता है। प्रकृति के सम्पर्क के कारण जीव में जिस गुण की प्रधानता होती है, उसी के अनुसार उसका अगला जन्म होता है। यदि जीव में तमोगुण की प्रधानता होती है तो गुणानुसार उसकी वैसी प्रवृत्तियाँ बन जाती हैं। उसका आगामी जन्म क्रमशः निम्नतर योनियों में होता रहता है। जीव का प्रवाह तिर्यक् योनियों की ओर बढ़ता रहता है। ज्ञातव्य है कि जीव द्वारा किये गये कर्म कभी नष्ट नहीं होते। तमोगुण प्रेरित कर्म जीव को अधोमुखी बनाते रहते हैं। यदि प्रकृति के सम्पर्क के कारण जीव में रजोगुण की प्रधानता होती है तो उसका अगला जन्म मध्यम श्रेणी में होता है। सतोगुण से प्रेरित जीव ऊर्ध्वगति वाला होता है। यदि सतोगुण प्रधान कोई जीव देहोत्सर्ग करता है तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। चिरकाल तक स्वर्ग में रहने के बाद उसका जन्म उच्च कुल में होता है। अथवा ऐसा जीव किसी योगी के कुल में जन्म लेता है। इस प्रकार उसका क्रमिक उन्नयन होता रहता है। यदि जीव उन्नयन-क्रम में ब्रह्मलोक तक पहुँच जाता है तो वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। ऐसी स्थिति को मोक्ष, निर्वाण अथवा कैवल्य कहा जाता है। ब्रह्म और जीव के सम्बन्ध में अन्य चिन्तक गोस्वामी तुलसीदास मानस में जीव और देह के सम्बन्ध को लेकर जो रूपक बाँधते हैं, उसका स्वर गीता से भिन्न है। गोस्वामी जी मानते हैं कि प्रकृति जड़ है और जीव चेतन। इन दोनों के बीच मिलन की एक गाँठ बन गयी है। यह गाँठ इतनी उलझ गयी है कि इसे सुलझाना सब जीवों के बस की बात नहीं है। गोस्वामी जी के अनुसार देह में जीव की स्थिति वही है जो पिंजड़े में तोते और मदारी की डोर से बँधे बन्दर की होती है। गीता का जीव ऐसी दासता की स्थिति में नहीं है। गीता का जीव तो अपने, गुणकर्मानुसार देह का वरण करता है, देह को उपकरण बनाकर उसका उपभोग करता है। देहगत ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से वह बाह्य एवं देहान्तरिक जगत् का रसास्वादन. करता है। देह में वह दास्यभाव से न रहकर स्वामीभाव से रहता है। ___ कबीर देह को घट और जीव को घटजल के रूप में प्रस्तुत करते हैं। घटजल का दृष्टान्त और गीता का जीव एक-दूसरे से भिन्न हैं। घटजल में पुरुषार्थ का नितान्त अभाव रहता है जबकि गीता के देहस्थित जीव में पुरुषार्थ की प्रधानता रहती है। जीव के पुरुषार्थ के आधार पर ही उसके अगले जन्मों का स्वरूप निर्धारित होता है। इसी प्रकार घटाकाश की संकल्पना भी गीता वर्णित जीव-देह सम्बन्ध से बिल्कुल भिन्न है। ज्ञातव्य है कि घटजल और घटाकाश में न तो कर्तृत्व है और न ही भोगतृत्व जबकि गीता के जीव में ये दोनों गुण हैं। मेरी मान्यता है कि गीता में जीव और देह की जो संकल्पना प्रस्तुत की गयी है, वही जन्म एवं मृत्यु की गुत्थियों को सुलझाने में सक्षम है।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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