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________________ मृत्युविमर्श - विष्णुपुराण तथा अग्निपुराण में विद्यमान यमगीताओं के सन्दर्भ में 81 वेदत्रयी में प्रतिपादित कर्मों को कर्तव्य समझकर अनासक्त भाव से अनुष्ठित करना श्रेयस्कर है, क्योंकि कर्म सर्वोत्तम मार्ग है, जो ब्रह्म की ओर प्रवृत्त करता है। ज्ञानी पुरुष जगत् के जीवों तथा परम तत्त्व में कोई भेद नहीं देखता। यह यमगीता तपश्चर्या का महत्त्व बताती है, जिससे ज्ञान, बुद्धि, ईश्वर में विश्वास, सम्पन्नता, सौभाग्य, आदि की प्राप्ति होती है।10 यहाँ विष्णु की उपासना एवं भक्ति, मुक्ति के सभी मार्गों में से एक मार्ग बताया गया है। विष्णु परम तत्त्व हैं, जिनका प्रख्यापन मात्र शब्दों से नहीं किया जा सकता। एक ही वह परम तत्त्व विभिन्न भक्तों के द्वारा विविध रूपों से जाने जाते हैं, जैसे यज्ञेश, विष्णु, शिव, ब्रह्मा, ईश्वर, इत्यादि। कुछ लोग इन्द्रादि नामों से तथा कुछ अन्य लोग सूर्य, चन्द्र या काल रूप से उस तत्त्व को पाना चाहते हैं। इनका प्रत्यभिज्ञान, ध्यान, भक्ति, व्रत, आदि की विधियों से सम्भव है। स्थादि रूपक के माध्यम से मन तथा इन्द्रियों को नियन्त्रित करने के सम्बन्ध में बताया गया है कि बुद्धिरूपी सारथि के अविवेकी होने से रथरूपी शरीर संसारगर्त में गिर जाता है तथा वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं होता। जो बुद्धिरूपी सारथि विवेकी होता है, वह इन्द्रियों तथा मनको नियन्त्रित रखने के कारण जन्म-मृत्यु से मुक्त हो परम पद को प्राप्त करता है। ____ योगमार्ग की चर्चा करते हुए यमगीता में बताया गया है कि यम-नियम के द्वारा जीवब्रह्मैक्य का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसी क्रम में योग के सभी अंगों - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की भी चर्चा की गयी है। समाधि योग का अन्तिम चरण है, जिसमें जीव ब्रह्म का सामंजस्य रूप ऐक्य प्राप्त होता है। जैसे घट के फूट जाने पर घटाकाश महाकाश में विलीन होकर एक हो जाता है, वैसे ही मुक्त जीव शरीरपात के अनन्तर ब्रह्म (परम तत्त्व) में विलीन होकर एक हो जाता है। पुराणों में विद्यमान गीतायें या तो उपदेष्टा को महत्त्व देने के लिए या प्रतिपाद्य विषय को महत्त्व देने के लिए गीता कहलाती हैं। यमगीताएँ भी इसी श्रेणी में आती हैं। ये यह बताने के लिए कि सभी मार्ग एक ही गन्तव्य तक जाते हैं, ज्ञान के विविध विश्वासों तथा उपायों की चर्चा करती - विभिन्न पुराणों में विद्यमान सभी गीतायें एक ईश्वर को चाहे नाम कोई दें, परम तत्त्व मानती हैं और अन्य नामों से व्यपदिष्ट देवताओं को उसकी अभिव्यक्ति / जैसे विष्णु पुराण की यमगीता, अग्नि पुराण की यमगीता और वराह पुराण की रुद्रगीता में विष्णु परम तत्त्व के रूप में, कूर्म पुराण की ईश्वरगीता में शिव परम तत्त्व के रूप में स्वीकृत हैं और देवी भागवत में विद्यमान देवीगीता में देवी परम तत्त्व के रूप में वर्णित हैं। परम तत्त्व सभी मृत्यु के क्षेत्र से बाहर है, तदतिरिक्त सभी तत्त्व परिवर्तनशील हैं अर्थात् उन पर मृत्यु का नियन्त्रण है। ___10. तदैव, 382.12-13/
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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