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________________ मृत्यु की दस्तक गीतायें चाहे महाभारत के अन्तर्गत की हों या पुराणों में, सभी उपदेशपरक हैं। गीताओं की कोई प्रतिपाद्य विषय-सम्बन्धी समरूपता नहीं है। सभी दार्शनिक या आध्यात्मिक ही हों, ऐसी भी बात नहीं है। पूरा विष्णु पुराण विष्णु को सर्वोच्च तत्त्व के रूप में मानकर उनकी स्तुति करता है। सामान्य रूप से पुराणों में वर्णित सभी विषय (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित) इसके छ: अंशों (भागों) में आ गये हैं। इसके अतिरिक्त यह पुराण बताता है, कि कैसे जन्म और मृत्यु के चक्र पर नियन्त्रण किया जा सकता है। केवल उन्तालीस श्लोकों में निबद्ध . यह यमगीता सिखाती है कि कैसे कोई जीव मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो सकता है। इसका मत है कि विष्णु को सच्चा भक्त यम की यातना से मुक्त रहता है। ब्रह्माण्ड में विभिन्न व्यक्त पदार्थ एक ही परम तत्त्व की अभिव्यक्ति हैं, प्रकाशन हैं, प्रकटीकरण हैं। एक ही तत्त्व व्यक्तावस्था में विविध नाम तथा रूप प्राप्त करता है। जैसे एक ही स्वर्ण भेदरहित होकर भी कटक, कुण्डल, इत्यादि नाना रूपों से व्यक्त होता है, वैसे ही एक ही विष्णु देव, मनुष्य, पशु, आदि विविध रूपों में अभिव्यक्त होते हैं। ये रूप गुणों में विद्यमान सन्तुलन (साम्यावस्था) के भग्न होने के कारण उत्पन्न होते हैं और पुनः अन्त होने पर उसी सनातन परमात्मा में लीन हो जाते हैं। जैसे वायु के शान्त होने पर उसमें उड़ते हुए धूलिकणरूप परमाणु पृथ्वी में पुनः समाहित होकर एक हो जाते हैं, वैसे ही गुणक्षोभ से उत्पन्न हुए देवता, मनुष्य, पशु आदि उस सनातन परमात्मतत्त्व में लीन हो जाते हैं। इस विवेचन के अनन्तर उन गुणों तथा स्वभावों का वर्णन किया गया है, जो विष्णु के सच्चे भक्त को अन्यों से पृथक् करते हैं। इसी सन्दर्भ में उस व्यक्ति का भी वर्णन किया गया है, जो विष्णु का भक्त नहीं है। इस प्रकार इस लघु गीता में विष्णु पुराण के सार-तत्त्व को बताने का प्रयत्न किया गया है और बताया गया है कि विष्णु की भक्ति ही जन्म-मृत्यु के चक्र से किसी को मुक्ति दिला सकती है और अन्तिम पुरुषार्थ मोक्ष की ओर प्रवृत्त कर सकती है। ____ अग्निपुराणस्थ यमगीता के मात्र सैंतीस श्लोकों में बोध के अनेक उपाय बताये गये हैं, जिनके आश्रयण से भोग तथा मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है तथा यमयातना तथा मृत्यु की भीति अपास्त हो जाती है। यह यमगीता मूलतः कठोपनिषद् के यम-नचिकेता-संवाद पर आधारित है, जिसे उद्धृत कर अग्निदेव ने वसिष्ठ को मृत्यु के संदर्भ में समझाया है। ब्रह्माण्ड तथा जीवों के क्षणिकत्व-स्वभाव की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए यहाँ कपिल एवं पंचशिख महर्षियों के मतों को यम ने उद्धृत किया है। इसके पश्चात् गंगा, विष्णु, जनक, इत्यादि के द्वारा बताये विभिन्न मार्गों की प्रशंसा की गयी है। जैगीषव्य का मत बताया गया है कि 7. विष्णु पुराण, 3.7.161 8. तदेव, 3.7.171 9. अग्नि पुराण, 382.2-51
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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