________________ मृत्युविमर्श - विष्णुपुराण तथा अग्निपुराण में विद्यमान यमगीताओं के सन्दर्भ में 79 परमेश्वर पृथक रुपों में तीन कार्य करते हैं - सृष्टि, पालन और नाश। नाश कार्य का ही नाम मृत्यु है। परमेश्वर सबकी मृत्यु हैं। अथर्ववेद में कहा गया है - "आचार्यो मृत्युः / कहीं-कहीं “मृत्युराचार्यस्तव" ऐसा ब्रह्मचारी को सम्बोधित करके कहा गया है। इस प्रकार निष्कर्ष निकला कि आचार्य (गुरु) मृत्यु है। द्विजन्म मान्यता के सन्दर्भ में इसकी सिद्धि होती है, क्योंकि माता-पिता से जात ब्रह्मचारी जब गुरुकुल में आचार्य के सम्मुख उपस्थित होता है, उसकी मृत्यु होती है और उसका द्वितीय जन्म आचार्य तथा सावित्री से होता है। अथर्ववेद में उल्लेख है - “मृत्योरहं ब्रह्मचारी यदस्मि निर्याचन, भूतात्पुरुषं यमाप” / यहाँ ब्रह्मचारी मृत्यु को समर्पित हुआ होता है। __ मृत्युहेतु उपचयापचयजन्य परिवर्तन को रोकना ही मृत्यु पर विजय या यमयातना से मुक्ति है। विष्णुपुराणस्थ यमगीता के अनुसारं - किङ्कराः पाशदण्डाश्च न यमो न च यातनाः / समर्थास्तस्य यस्यात्मा केशवालम्बनस्सदा।।' "केशवालम्बन” का तात्पर्य है, एक विशिष्ट जीवन-शैली, जो शरीर के उपचयापचय तथा परिवर्तन को रोक सके। इसी प्रकार अग्नि पुराण की यमगीता में भी मुक्ति का मार्ग बताया गया है, जिसका अर्थ है जन्म तथा मृत्यु पर विजय / यहाँ कहा गया है, कि पुरुष ही परम तत्त्व है, जहाँ पहुँचने पर किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता - पुरुषान्न परं किंचित सा काष्ठा सा परा गतिः / प्रस्तुत प्रसंग में यह उल्लेखनीय है कि विष्णुपुराणस्थ यमगीता ने बताया है कि सर्वथा परम तथा चरम सर्वोच्च तत्त्व विष्णु के सच्चे निष्ठावान् भक्त को यमयातना नहीं होती। यह बात यमगीता के अन्तिम श्लोक में स्वयं वैवस्वत यम ने बतायी है। विष्णु पुराण के तृतीय अंश में वर्णित विभिन्न अन्य विषयों के सातत्य में यमगीता में प्रतिपादित विष्णु-भक्ति के वर्णन का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। यमगीता का यह अध्याय सम्भव है बाद में जोड़ दिया गया। यमगीता के स्वरूप को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पुराणों में विद्यमान गीताओं में यह यमगीता प्राचीनतम है। गीता विधा के विशेष, स्वरूपनिर्धारण के. पूर्व यह लिखी गयी हो सकती है। अग्नि पुराण का उपान्तिम अध्याय (382वाँ) भी यमगीता के रूप में प्रख्यापित है। यम के द्वारा कठोपनिषद् में नचिकेता को दिये गये कुछ उपदेश इस यमगीता में लिये गये हैं। 2. अथर्ववेद, 11.5.141 3. अथर्ववेद, 6.133.61 4. विष्णु पुराण, 3.7.381 5. अग्नि पुराण, 382.28 | 6. विष्णु पुराण, 3.7.391