________________ 82 . मृत्यु की दस्तक पुराणों में विद्यमान सभी गीतायें कर्म को ब्रह्मज्ञान का साधन नहीं मानतीं, भले ही वे. कर्म-नियम से सहमत हैं, कि सभी कर्मों का फल भोगना पड़ता है। पुराण भक्ति को ही ब्रह्मज्ञान का सर्वोत्तम साधन मानते हैं। ब्रह्म-ज्ञान के विविध मार्गों पर विचार करते हुए यमगीता कर्म-मार्ग को भी एक साधन मानती है, लेकिन वह उन्हीं कर्मों को जो अनासक्त भाव से किये गये हों - कर्तव्यमिति यत्कर्म ऋग्यजुःसामसंश्रितम्। कुरुते श्रेयसे संगात् जैगीषव्येण गीयते।।11 विष्णु पुराण की यमगीता तो कर्म बन्धन मानती है जो जन्म-मृत्यु के चक्र की ओर उन्मुख करता है - अंगुलस्याष्टभागोऽपि न सोऽस्ति मुनिसत्तम। न सन्ति प्राणिनो यत्र कर्मबन्धनिबन्धनाः / / सर्वे चैते वशं यान्ति यमस्य भगवन् किज। आयुषोऽन्ते तथा यान्ति यातनास्तत्प्रेचोदिताः / / 12 यही बात देवीगीता में भी कही गयी है कि कर्म बन्धन के साधन हैं, मोक्ष के नहीं। केवल ज्ञान ही बन्धन के उच्छेद का काम करता है। बन्धन का उच्छेद और कर्म-मार्ग प्रकाश तथा अन्धकार के तुल्य हैं, जिनका सहभाव सम्भव नहीं है। अज्ञान के निवारण से ही ब्रह्म-ज्ञान सम्भव है। अग्नि पुराण की यमगीता कहती है - ब्रह्म-ज्ञान, सुवर्णादिदान, पवित्र तीर्थों में स्नान, ध्यान, व्रत, पूजा और धर्म के श्रवण आदि से जो प्राप्त होता है उसे कर्म-भक्ति कहते हैं, जिसमें कर्म और भक्ति दोनों का सम्मिश्रण होता है। केवल कर्म से जन्म-मृत्यु से मुक्ति नहीं मिल सकती। उसमें भक्ति या ज्ञान का सम्मिश्रण होना चाहिए। ___भक्ति का अर्थ है निरन्तर, निर्बाध, सर्वदा ईश्वरविषयक चिन्तन। निरन्तर उपासना से जीव स्वयं ईश्वर हो जाता है - अधश्चोर्ध्वं हरिश्चाग्रे देहेन्द्रियमनोमुखे। इत्येव स स्मरन् प्राणान् यस्त्यजेत् सह हरिभवेत्।।13 इस प्रकार भक्तिपूर्ण जीवन-शैली से आचरण करने वाला सच्चा भक्त बार-बार यम के वश में नहीं आता। यम का नियन्त्रण उसी पर होता है, जो विष्णु या परम तत्त्व को समर्पित नहीं है। एक सच्चा भक्त वह है, जो स्वयं दूसरे प्राणियों एवं परम तत्त्व या वासुदेव में भेद नहीं मानता। वह विविध मनोमलों से मुक्त हो जाता है जो शरीर के उपचयापचयरूप परिवर्तन से उत्पन्न मृत्यु के हेतु हैं। 11. तदैव, 382.8 / 12. विष्णु पुराण, 3.7.4-51 13. अग्नि पुराण, 382.16 |