________________ 58. मृत्यु की दस्तक मृत्यु-सम्बन्धी विचार जिन महापुरुषों ने मृत्यु की वास्तविकता को समझा और तत्सम्बन्धी अपने विचार प्रकट किए उससे भी मृत्यु की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है तथा विश्वास होता है कि धनवान एवं निर्धन और छोटे-बड़े सबका यही परिणाम है। 1. उमवी खलीफा उमर बिन अब्दुल अजी बड़े सज्जन एवं न्यायप्रिय खलीफा थे। जब मृत्यु का समय हुआ तो रोने लगे। लोगों ने पूछा अमीरुल मोमिनीन! आप क्यों रो रहे हैं? आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि आपके माध्यम से अल्लाह ने पैगम्बर का आदर्श पुनः स्थापित किया तथा जनसाधारण तक न्याय पहुंचाया। यह सुनकर रोते हुए बोले, “मुझसे प्रजा के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा जाएगा। यदि मैंने पूर्ण न्याय स्थापित किया होता तो भी अल्लाह के समक्ष उत्तर देने की क्षमता न थी परन्तु जब मुझसे भी अन्याय हुआ है तब क्या उत्तर दूंगा? यह कहते हुए उनके आंसू तीव्र हो गये और कुछ ही क्षणों में निःष्प्राण हो गये।” (अहयाउल उलूम, 4/97) 2. अब्बासी काल के महान् खलीफा हारूत रशीद ने अपना कफ़न स्वयं अपने हाथ से चुनकर, उसे देखते हुए इस आयत का पाठ किया / ما أغنى عني سالیی، هلك عني سلطانية अर्थात् मेरी दौलत मेरे काम न आयी और मेरा तर्क लुप्त हो गया। (अहयाउल उलूम, 4/597) 3. मामून की सल्तनत और उनका दबदबा जगत् प्रसिद्ध है। मृत्यु निकट आई तो राख या धूल पर लेटकर कह रहे थे कि “ऐ वह हस्ती! कि जिसकी बादशाही का पतन नहीं, इस मनुष्य पर कृपा कर कि जिसकी बादशाही समाप्त हो चुकी है।" (अहयाउल उलूम, 4/597) 4. इब्न मुबारक एक बड़े विद्वान् और हदीसवेत्ता थे। व्यापार अच्छा होने के कारण दौलत भी थी। जब मृत्यु का समय निकट आया तो अपने सेवक से बोले कि मेरा सिर मिट्टी पर रख दो। यह सुनकर सेवक रोने लगा। उन्होंने पूछा क्यों रोते हो? सेवक ने उत्तर दिया कि आपने सुख सम्पन्नता में जीवन व्यतीत किया है और आज फकीरी एवं परदेश में मर रहे हैं। इन मुबारक ने सेवक से कहा कि चुप रहो, मैंने प्रार्थना की थी, कि “ऐ अल्लाह मुझे दौलतमन्दों की जिन्दगी और फकीरों की मौत प्रदान कर।" पुनः अपने सेवक से कहा कि मुझे UIYIJIY की प्रेरणा देते रहो। (अहयाउल उलूम, 4/895)