________________ मृत्यु की अवधारणा - इस्लाम की दृष्टि में अर्थात् प्राण है और दूसरा भौतिक पदार्थ अर्थात् शरीर है। जब मनुष्य मर जाता है तो भौतिक नश्वर पदार्थ के विनाश से आत्मा को कोई हानि नहीं होती है। इस अवस्था में आत्मा प्राण में विलीन रहता है, जैसेकि एक अच्छा लेखक जिसका हाथ काट दिया जाए, परन्तु लेखन की क्षमता प्रदर्शन का माध्यम न होने पर भी उसकी वह विशेषता विद्यमान रहे। इसी बात को शाह साहब ने आगे भी दुहराया है। लिखते हैं कि लौकिक स्थिति में ह्रास उत्पन्न होता है (हुज्जतुल्लहिलवालेगह, 1/70) मृत्योपरान्त आत्मा की स्थिति इस्लामी विद्वानों का मत है कि मृत्यु का प्रभाव केवल शरीर पर पड़ता है और आत्मा मरणोपरान्त भी जीवित रहती हैं। हां यदि मनुष्य का व्यवहार अच्छा था तो आत्मा सुख भोग करती है और यदि बुरा था तो दंडित होती है। क्योंकि आत्मा में शरीर से पृथक् होने पर भी सुख-दुःख अनुभवं की क्षमता रहती है। (अलु मौसुअतुल फिकहीया, 39/249) __इमाम गज़ाली ने मृत्यु के पश्चात् आत्मा की स्थिति स्पष्ट करते हुए लिखा है कि आत्मा नष्ट नहीं होती परन्तु उसकी स्थिति बदल जाती है। कब्र उसके लिए स्वर्ग का एक बगीचा बन जाती है या नर्क का एक टुकड़ा। (अल मौसुअतुल फिकहीया, 39/250) . मृत्यु के पश्चात् और कयामत से पहले आत्मा का निवास इमाम इन कय्यूम ने लिखा है कि ईश्वर ने तीन प्रकार का निवास बनाया है। पहला संसार का घर, दूसरा वरज़ख़ का घर और तीसरा एवं अंतिम स्थाई निवास का घर। प्रत्येक घर से सम्बन्धित नियम-निर्देश अलग-अलग हैं। उस (ईश्वर) ने मनुष्य को शरीर और आत्मा से बनाया है। संसार के निर्देश शरीर से सम्बन्धित किये हैं तथा आत्मा को उसका अनुयायी बनाया है। बरज़ख के निर्देश आत्मा से सम्बन्धित किये हैं और शरीर को उसका अनुयायी बनाया है। अतः जिस प्रकार सांसारिक निर्देश में आत्मा शरीर की अनुयायी है और उसका .सुख-दुःख अनुभव करती है उसी प्रकार बरज़ख़ के निर्देशों में शरीर आत्मा की अनुयायी है और वहां का सुख-दुःख अनुभव करता है। - “बरजख” उस जिन्दगी को कहते हैं जो मृत्यु के पश्चात् तथा कयामत के दिन से पहले मनुष्य को प्राप्त होती है। कुरआन और हदीस में इसका स्पष्ट विवरण है। (कितावुरुह, पृ. 74) 'कब्र की स्थिति मनुष्य भौतिक एवं अनुभव होने वाली चीजों का पाबन्द है। जो कुछ वह ज्ञानेंद्रियों से ज्ञात नहीं कर पाता उसकी पुष्टि भी नहीं करता है। इसीलिए इस्लाम ने ईमान बिल गैब (अदृश्य