________________ सिक्ख धर्म में मृत्यु का स्वरुप “जिउ कऊ आपि लए प्रभु मेलि तिनु कउ कालु न साकै वेलि” - आसापदे 15/2 परमात्मा के अनुग्रह द्वारा जीव आवागमन के बंधन से छूट जाता है और उसे इस जन्म में प्रभु का अनुग्रह तथा मृत्यु के पश्चात् उसका सानिध्य प्राप्त हो जाता है। ___सिख धर्म में मृत्यु के पश्चात् पितरलोक की कोई व्यवस्था स्वीकृत नहीं है और न ही वहाँ स्वर्ग का प्रलोभन है और न ही नर्क की भयावहता। वहाँ तो केवल हीरे जैसा जीवन है जिसे सफल बनाकर “मृत्यु" को जीता जा सकता है।