________________ मृत्यु की अवधारणा इस्लाम की दृष्टि में - मुक्तदा हसन अजहरी मुस्लिम दार्शनिकों ने मृत्यु पर धर्म एवं दर्शन, दोनों पहलुओं से प्रकाश डाला है तथा धार्मिक विद्वानों ने पवित्र कुरआन एवं हदीस के प्रकाश में इसकी विवेचना की है। इन विद्वानों ने इस तथ्य पर बहुत बल दिया है कि जब मृत्यु अपरिहार्य सत्य है और उसके बाद एक नये जीवन का आगमन है तब तो मनुष्य मात्र को उसकी तैयारी में पुण्य कार्य करना अति आवश्यक है जिससे उसकी आने वाली नयी जिन्दगी सुख-शान्तिमय हो। ‘जैसाकि पहले कहा गया है कि यह विषय बड़ा व्यापक है इसलिए संक्षेप की दृष्टि से मैंने निम्नलिखित तथ्यों पर ही प्रकाश डाला है - मृत्यु की परिभाषा, “मृत्यु' शब्द का वर्णन पवित्र कुरआन में मृत्यु से सम्बन्धित विभिन्न दृष्टिकोण, शाह वलीउल्लाह (एक महान् धार्मिक विद्वान्) का मत, मृत्यु के बाद आत्मा की अवस्था, कब्र की अवस्था, पवित्र कुरआन में मृत्यु का वर्णन, मृत्यु के स्मरण का लाभ, सकरात (मरणासन्न) की अवस्था, मृत्यु-सम्बन्धी विभिन्न विद्वानों का मत, अन्ततः मृत्यु एक कवि की दृष्टि में। आशा है कि इस लेख द्वारा मृत्यु-सम्बन्धी इस्लाम का दृष्टिकोण कुछ अवश्य स्पष्ट होगा। मृत्यु की परिभाषा मौत अरबी भाषा का शब्द है। शब्दकोष में इसे "हयात” अर्थात् जीवन का विलोम बताया गया है। पारिभाषिक अर्थ यह है कि आत्मा शरीर से पृथक् हो जाए। इमाम गजाली ने इसकी विवेचना करते हुए लिखा है कि शरीर आत्मा के अनुगमन से स्वतन्त्र हो जाता है। इसलिए अब शरीर से उसके उपभोग का क्रम समाप्त हो जाता है। (अल मौसुअतुल फिकहीया, 39/248) * अनुवादक अहमद हुसेन