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________________ मृत्यु की दस्तक वह स्थान स्थिर है और सदा निर्मल रहता है। शरीर रूपी गढ़ के अन्दर ज्ञान और कर्मेन्द्रियों का बाजार सजा हुआ है। दशम द्वार रूपी गुफा ही उसका निवास स्थान है।' उसे बाहर ढूँढ़ना व्यर्थ है। वह अमृत पदार्थ तो भीतर ही बसता है - बाहरि ढूँढ़त बहुत दुःख पावहिं हरि अमृतु घट माहि जीउ - सोरठ, पदे 9 उपनिषदों में भी शरीर को देवालय अथवा हरि का मंदिर कहा गया है। यह मानव शरीर अत्यन्त दुर्लभ है, क्योंकि परमात्मा की उपासना, साधना का यह सर्वप्रमुख साधन है। यद्यपि यह शरीर नश्वर है, तथापि सिख गुरुओं ने कहीं भी शरीर को हेय नहीं माना है - 'उनका कहना है कि माणिक्य तथा हीरे जैसे मानव जन्म को व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए - माणसु जनमु दुर्लभ गुरुमुखि पाइया, हीरे जैसा जनमु है कउड़ी बदले जाइ - सूही अष्टपदी 3/1 गुरु अमरदास ने भी मानव जन्म को पूर्वजन्मों के शुभ कर्मों का परिणाम मानते हुए इसे हरिभक्ति का सर्वोत्तम साधन कहा है। इस दुर्लभ मानव जीवन की सार्थकता तभी है जब वह ईश्वर से अपनी लौ लगा ले और उसकी भक्ति में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। क्योंकि इस शरीर की महत्ता तभी तक है जब तक जीव का इससे सम्बंध है। जीव का शरीर से शाश्वत् संबंध नहीं है। जीव एवं शरीर के संबंध को रूपक के माध्यम से स्पष्ट करते हुए आदिग्रंथ में कहा गया है कि "जीवात्मा योगी पुरुष के समान है जो अहर्निश शरीर रूपी स्त्री के साथ आनन्दपूर्वक भोग करता रहता है और जब भोग पूर्ण हो जाता है तो चला जाता है / " यही मृत्यु की अवस्था है। मृत्यु की अवस्था का वर्णन करते हुए आदिग्रंथ में कहा गया है कि - मृत्यु अवस्था में शरीर बड़ा भयावह हो जाता है। उसकी जीवन सत्ता रूपी प्रज्वलित अग्नि बुझ जाती है और बुझते समय धुआं तक नहीं निकलता।" मृत्यु की भयावहता एवं मृत्यु के शोक से उबरने का एकमात्र उपाय सिख धर्म के अनुसार ईश्वर में एकनिष्ठ भक्ति है। यदि परमात्मा स्वयं प्राणी को अपने में मिला ले तो उसे काल से मुक्ति मिल सकती है - 7. मारु सोलहे 182121 __8. देवो देवालयः प्रोक्तः सजीवः केवलः शिवः / 9. काइआ हंस प्रीति बहुधारी ओहजोगी पुरुखु ओह सुंदर नारी, अहनिस भोगे चोज विनोदी। उठि उलतै मता न कीना है। - मारु सोलहे 8/6 10. सिरी पदे 14/11
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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