________________ सिक्ख धर्म में मृत्यु का स्वरुप सिख धर्म भारतीय धर्म दर्शनों के विशाल उद्यान का एक सुवासित पुष्प है। यह धर्म प्रवृत्तिमूलक धर्म है। यहाँ जीवन एवं मृत्यु के विषय में गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया है। सिख धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है आदिग्रन्थ। इसे हम सन्तमत का अद्भुत एवं प्रामाणिक संकलन कह सकते हैं। आदिग्रन्थ में सिख धर्म के दस गुरुओं के अतिरिक्त नामदेव, ज्ञानदेव, एकनाथ, तुकाराम, कबीर, दादू, धन्ना, मीराबाई, रैदास, शेखफरीद, आदि तत्कालीन लगभग सभी संतों की वाणी समान आदर के साथ संग्रहित है। इससे इस धर्म का व्यापक समन्वयात्मक रूप उजागर होता है। सिख धर्म के आदि प्रवर्तक गुरु नानकदेव जी की रचनाओं में जन्म एवं मृत्यु के विषय में सहज जिज्ञासा प्राप्त होती है कि “जन्म-मरणशील जीव कहाँ से आता है? किस प्रकार उत्पन्न होता है? और किसमें जाकर समा जाता है? इसका समाधान भी वहीं अगले पद में प्राप्त हो जाता है कि - “जीव सहज ही जाता है। मन के संकल्प विकल्प से उत्पन्न होता है और आत्मज्ञान होने पर मन में ही समा आता है। 2 मन के संकल्प-विकल्प से यहाँ तात्पर्य कर्म तथा कर्मगत संस्कारों से है। भारतीय परम्परा में जीवन एवं मृत्यु का सीधा संबंध “कर्म” से जोड़ा जाता है। इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए सिख गुरुओं ने भी जीव में जन्म एवं मृत्यु को उसके कर्मों का ही परिणाम माना है। सिख धर्म में मानवकृत कर्मों को "किरत-कर्म” कहा गया है। “किरत” संस्कृत भाषा के “कृत" शब्द का ही तद्व रूप है जिसका अर्थ है किया हुआ। "किरत" शब्द के माध्यम से सिख गुरुओं ने गत-जन्मों में किए गये कर्मों के परम्परागत भावों को ही अभिव्यक्त किया है। जीव अपने "किरत-कर्म के अनुसार ही जन्म ग्रहण करता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। __“जातस्य हि ध्रुवं मृत्यु" भगवद्गीता के इस उद्घोष की ही भांति सिख धर्म में भी समस्त जीवधारी को मृत्यु के नियम के अधीन माना गया है। जो जन्म धारण करता है उसकी मृत्यु निश्चित् है - ". जो उपजै से कालि संधारिआ - गउडी, अष्टपदी 14 प्रत्येक प्राणी इसे विधाता से लिखाकर आया है - मरण लिखाइ मंडल महि आये। __ - घनासरी अष्टपदी 1/6 1. जातो जाइ कहा ते आवे, कह उपजे कह जाए समावै, किउ बाँधिओ किउ मुकुति पावै, किउ अविनासी सहज समावै। - गउडी पदे 6/1 2. सहजै आवे सहजै जाइ, मन ते उपजै मन माँहि समाई। गुरुमुखि मुकतो बंधु न पाई, सबदु वीचारी छुटै हरिनाई। - वही, 6/2