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________________ 46. मृत्यु की दस्तक सभी जीवों को एक दिन इस संसार से बिछुड़ना ही है - सभना मरणा बिछोड़ा सभनाह - सोरठ पदे 1/1 मृत्यु निश्चित् है परन्तु इसके विषय में कोई नहीं जानता कि कब, कहाँ और कैसे मृत्यु आ जाएगी। यह मृत्यु किसी से पूछकर नहीं आती और न ही यह राजा अथवा रंक में कोई भेद रखती है - मराणी न मूरतु पुछिया, पूछी थिति न वार, . इकनी लदिया इकि लदि, चले इकती वधेभार / - सारंग, श्लोक 26 परन्तु परमात्मा की कृपा जिस पर हो जाती है वह "मृत्यु” को भी जीत लेता है। मृत्यु उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाती। जिनु कउ आपि लए प्रभु मेलि, तिनु कउ कालुनसाके वेलि / ___ - आसा, पदे 15/2 इसीलिए सिख धर्म में ईश्वर भक्ति तथा नाम स्मरण का विशेष महत्त्व है। ईश्वर भक्ति द्वारा व्यक्ति ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है जिससे वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है। "मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का तात्पर्य यह नहीं है कि व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी क्योंकि मृत्यु तो निश्चित् है, अपितु इसका तात्पर्य मात्र इतना है कि मृत्यु के पश्चात् वह ईश्वर में समा जाता है और जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है फिर उसे पुनः जन्म धारण नहीं करना पड़ता और न ही वह मृत्यु का ग्रास बनता है। यही वास्तविक मुक्ति की अवस्था है। सिख धर्म में मृत्यु के पश्चात् के जीवन के विषय में दो ही सम्भावनाएं हैं या तो जीव कर्मोपभोग के लिए पन: जन्म-ग्रहण करेगा या मक्त हो ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करेगा। बीच में पितरलोक अथवा स्वर्ग-नरक की कोई स्थिति सिख धर्म में स्वीकार नहीं की गयी है। मृत्यु के पश्चात् मुक्त जीव के विषय में दो सिद्धान्त पाए जाते हैं - 1. लय सिद्धान्त 2. संरक्षण का सिद्धान्त / दोनों ही स्थितियों में मृत्यु के पश्चात् जीव ईश्वर में समा जाता है और उसे परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है। “मृत्यु” के विषय में चर्चा करते हुए एक प्रमुख समस्या उपस्थित होती है कि "मृत्यु" किसकी होती है, मरता कौन है? भारतीय परम्परा में जीव को अविनाशी माना गया है। वह न मरता है न मारा जाता है। इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए सिख धर्म में भी कहा गया है कि - 3. The Sikh Review, 1983, Chapter 18. 4. नायं हन्ति न हन्यते - गीता 2/19.
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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