________________ जैन दर्शन में मृत्यु विज्ञान - संथारा के परिप्रेक्ष्य में 7. आत्महत्या नकारात्मक है तथा समाज में 7. सल्लेखना सकारात्मक है। समाज में निंदनीय है। धर्म-विरुद्ध है। सम्माननीय है। धर्म-सम्मत है। समाधिस्थल बनाये जाते हैं। जबकि कोई आत्महत्या स्थल नहीं बनाये जाते हैं। 8. आत्महत्या में “हत्या” शब्द का प्रयोग है। 8. सल्लेखना में यह शब्द नहीं है। 9. आत्महत्या में बलात् मृत्यु को बुलाया 9. सल्लेखना में आयी हुई मौत का स्वागत जाता है। होता है। 10. आत्महत्या विवशता में की जाती है। 10. सल्लेखना स्ववशता में ली जाती है। 11. आत्महत्या अनायास होती है क्रमिक 11. सल्लेखना का एक वैज्ञानिक क्रम है नहीं। ऐसा सुनने में नहीं आता कि अमुक जैसे 12 वर्षों की उत्कृष्ट नियम सल्लेखना। व्यक्ति एक महीने से आत्महत्या कर रहा है। साधक बहुत समय से तथा बहुत समय तक . सल्लेखना लिये रहता है। इसके अलावा भी और अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यहाँ प्रस्तुत किये जा सकते हैं। हम जब कभी भी किसी सिद्धान्त या आचार को देखते हैं तो उसके सत्य या असत्य का निर्णय बाहर से कर लेते हैं, उसकी आत्मा को देखने की कोशिश नहीं करते। तर्क से धर्म को नहीं समझा जा सकता | अध्यात्म तर्कातीत होता है। सल्लेखना को आत्महत्या कहना बहुत ही हल्का और स्थूल कथन है। कोई बिना एक्सीडेण्ट, हॉर्ट अटैक या किसी बीमारी के मरेगा तो लोगों को सिवाय आत्महत्या के कोई दूसरा कारण ही समझ में नहीं आयेगा / आत्महत्या शब्द प्रसिद्ध भी बहुत है इसलिये कई लोगों को “सल्लेखना” की अवधारणा में भी आत्महत्या ही दिखाई देती है। अतः हमें हर दृष्टि को समझने के लिए गहराई में अवश्य जाना चाहिए तभी हम जैन धर्म तथा संस्कृति की इस महत्त्वपूर्ण सच्चाई को समझ पायेंगे।