________________ 32 मृत्यु की दस्तक सल्लेखना आत्महत्या नहीं है वर्तमान समय में जैन दर्शन के भाव विज्ञान की गहराइयों को नहीं समझने वाले तथाकथित लोग इस परम आध्यात्मिक भाव परिष्कार की चिकित्सा को आत्महत्या जैसी तुच्छ व कायरतापूर्ण कृत्य का नाम देकर अपनी अल्पज्ञता का परिचय देते हैं। सल्लेखना व संथारा के द्वारा जो समाधिपूर्वक मरण होता है, उसमें और आत्महत्या में मौलिक अंतर है : आत्महत्या सल्लेखना 1. आत्महत्या वह व्यक्ति करता है जो 1. सल्लेखना या संथारा व्यक्ति द्वारा किसी परिस्थितियों से उत्पीड़ित है, उद्विग्न है, परिस्थिति से घबराकर, निराशा में किसी जिसकी मनोकामनायें पूर्ण नहीं हुई हैं। वह निमित्त से मरने का प्रयास नहीं करता। संघर्षों से ऊबकर जीवन पलायन करना बल्कि संयम की आराधना करते हुये स्वाचाहता है या किसी से अपमानित होने पर, भाविक मृत्यु से न भागकर उसका स्वागत कलह होने पर, आवश्यकताओं की पूर्ति न करता है। होने पर, पारस्परिक मनो-मालिन्य होने पर, कुएँ में कूदकर, समुद्र में गिरकर, विष खाकर, फाँसी लगाकर अपना जीवन समाप्त करता है। 2. आत्महत्या में वीरता नहीं, वरन् कायरता 2. सल्लेखना में कषाय और वासना का, है और जीवन से भागने का प्रयास है। इच्छा का अभाव रहता है। इसमें साधक आत्महत्या के मूल में भय और कामनायें भयभीत नहीं रहता। . रहती हैं, कषाय और वासना की तीव्रता और उत्तेजना है। 3. आत्महत्या करते समय व्यक्ति की मुख- 3. सल्लेखना में साधक की मुख-मुद्रा पूर्ण मुद्रा विकृत होती है, उस पर तनाव होता है, शान्त होती है, उसके चेहरे पर किसी किस्म उस पर भय की रेखायें झलकती रहती हैं। की आकुलता-व्याकुलता नहीं होती। 4. आत्मघात करने वाले का स्नायुतन्त्र 4. सल्लेखना करने वाले का स्नायुतंत्र तनावयुक्त होता है। तनावमुक्त होता है। 5. आत्मघात करने वाले की मृत्यु आकस्मिक 5. सल्लेखना स्वाभाविक मृत्यु को स्वीकारने होती है। की कला है। उसका आधार जीवन-दर्शन 6. आत्महत्या लुक-छिपकर की जाती है। 6. सल्लेखना का स्थल सभी को ज्ञात होता है।