________________ 28 . मृत्यु की दस्तक किसी परिस्थिति विशेष में जब मरण में संदेह हो तो दो प्रकार से समाधिमरण का नियम बतलाया है - प्रथम - यदि इस विषम स्थिति में मेरी मृत्यु होती है तो मेरा यावज्जीवन के लिए आहार-पानी का त्याग है। द्वितीय - कदाचित् किसी पुण्योदय से जीवित बच जाऊँगा तो थोड़े समय तक आहार आदि का त्याग है और शेष जीवन नियम, संयम, व्रत, उपवासादि के साथ .. धर्मध्यान से व्यतीत करूँगा। मानसिक तैयारी समाधिमरण का धारक सभी सम्बन्धियों से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के प्रति मन, वचन, कर्म से क्षमा मांगें और अपने मन से भी सभी को क्षमा करें। कोई मलिनता मन में न रखें। क्षमाभाव रखने से मन हल्का हो जाता है। घर-गृहस्थी, व्यवसाय, आदि के भार से अपने को मुक्त करें। दान-पुण्यादि का व्यवहार पूरा कर लें। जीवन में अपने द्वारा किये गये कार्यों की समालोचना कर दोषों के लिए पश्चात्ताप करें। मोह-ममता से अपने को विलग कर . जीवनरूपी नाव का भार हल्का करें, ताकि भवसागर से पार होने में सहयोगी बने। .. आजकल के समय में दुर्घटनाओं के होने से दुर्भाग्य से कितने लोगों की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। यदि मनुष्य अपना जीवन पूर्ण रूप से जी ले और सहज स्वतः मृत्यु हो तो वह आज के समय में भाग्यशाली माना जाता है। अतः ऐसी मृत्यु का स्वागत करना चाहिए मृत्यु-महोत्सव मनाकर। सल्लेखना में सहायकों की महत्ता जब हम किसी महोत्सव का आयोजन करते हैं तो उसकी निश्चित् तिथि के बहुत समय पहले अनेक लोगों की सहायता लेते हैं। उन्हें उनकी क्षमतानुसार अलग-अलग कार्यों को सौंप देते हैं। सभी आयोजन सानन्द सफल होता है। इसी तरह मृत्य-महोत्सव करने वाले व्यक्ति के लिए सहायक लोगों का स्थान भी महत्त्वपूर्ण है। सल्लेखनाधारी के पुण्य यज्ञ में सहायक जन सदैव उसे तत्वज्ञान पूर्ण मधुर उपदेश करते हैं तथा शरीर और संसार की असारता और क्षणभंगुरता का ध्यान दिलाते हैं, जिससे वह व्यक्ति राग-द्वेष, मोह को हेय समझकर छोड़ चुका है, या संकल्प कर रहा है वह उनमें पुनः लिप्त न हो। समाधिमरण पाठ, बारह भावना, स्तोत्रादि पाठ सुनाते हैं। आहारादि पर विजय प्राप्त करने के लिये क्रमशः धीरे-धीरे एक-एक वस्तु का त्याग करवाते हैं। उठनेबैठने-सोने, आदि में कोई परेशानी न हो इसमें पूरा सहयोग देते हैं। समाधिमरण धारक की संकल्प और दृढ़ता को पुष्ट करने में अपना कर्त्तव्य निभाते हैं। आत्मा व परमात्मा के मिलन