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________________ बौद्ध धर्म - मृत्यु की अवधारणा 4. बत्ती और तेल दोनों का क्षय न होने पर भी वायु या अन्य किसी आगन्तुक कारण से होने वाला निरोध। 1. आयुःक्षय जिस प्रकार तेल रहने पर भी यदि बत्ती का क्षय हो जाता है तो दीपक की लौ का निरोध हो जाता है, उसी तरह जीवित रहने के लिए कर्म विद्यमान रहने पर भी आयुष् पूर्ण हो जाने से च्युति हो जाती है। यह आयुःक्षय निरोध है। कुछ पुण्यवान् व्यक्ति निश्चित् आयुःप्रमाण से अधिक भी जीवित रहते हैं। 2. कर्मक्षय जीवन को धारण करने वाले कर्म ही यहाँ “कर्म' कहे गये हैं। उन कर्मों की शक्ति के क्षय को “कर्मक्षयः कहते हैं। यह कर्मक्षय उपर्युक्त उदाहरणों में से तेल के क्षय की तरह होता है। जिस प्रकार बत्ती के विद्यमान रहने पर भी तेल का क्षय हो जाने से दीपक का निरोध हो जाता है, उसी प्रकार आयुःप्रमाण अवशिष्ट रहने पर भी कर्मशक्ति का क्षय हो जाने से च्युति हो जाती है। जैसे 100 वर्ष आयुःप्रमाण होने पर भी किसी की 50 वर्ष में ही च्युति हो जाती है। इस कर्मक्षय को ही जब देव या ब्रह्माओं की अपने निश्चित् आयुःप्रमाण से पहले च्युति हो जाती है तो "पुण्यक्षय” भी कहते हैं। 3. उभयक्षय आयुष् एवं कर्म दोनों के क्षय को "उभयक्षय” कहते हैं। यह तेल और बत्ती दोनों के क्षय से होने वाले दीपक के निरोध की तरह होता है। 4. उपच्छेदक कर्म उपघातक कर्म को ही. उपच्छेदक कर्म कहते हैं। आयुःप्रमाण एवं कर्म-शक्ति दोनों के विद्यमान रहने पर भी पूर्व-जन्म के या इसी जन्म के किसी एक कर्म द्वारा उपघात करने से जब च्युति होती है तो उसे “उपच्छेदक कर्म से च्युति” कहते हैं। इसे तेल एवं बत्ती दोनों के विद्यमान होने पर भी वायु या किसी अन्य आगन्तुक कारण से होने वाले दीपक के निरोध की तरह जानना चाहिए। कालमरण एवं अकालमरण मृत्यु के उपर्युक्त चार कारणों में से पूर्ववर्ती तीन कारणों से च्युति होना “कालमरण” तथा उपच्छेदक कर्म द्वारा च्युति होना “अकालमरण” कहलाता है। अकालमरण के प्रसंग में अन्य अनेक बातें भी हैं, यथा - भूख, प्यास, सर्पदंश, विष, अग्नि, जल एवं शस्त्र द्वारा भी अकाल मृत्यु होती है। वात, पित्त, श्लेष्मा, सन्निपात, ऋतु-विकार तथा स्वयं अपने द्वारा या दूसरों के द्वारा विषम प्रयत्न किये जाने से व्यक्ति अकालमरण को प्राप्त होता है। इस तरह अकालमृत्यु के अनेक कारण होते हैं।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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