________________ 22 _ मृत्यु की दस्तक ____ व्यक्तित्व के उपादानों में कोई भी नित्य पदार्थ नहीं है, फिर भी अज्ञानवश लोगों ने पाँच स्कन्धों के अतिरिक्त एक आत्मा की कल्पना कर ली है तथा उस कल्पित आत्मा से सम्बद्ध वस्तुओं और प्राणियों के प्रति आत्मीय संज्ञा कर ली है। यद्यपि आत्मा और आत्मीय की सत्ता बिल्कुल भी नहीं है, फिर भी लोग उनकी सत्ता के प्रति अभिनिविष्ट हैं। हर व्यक्ति ने अपना एक स्वतंत्र संसार रच लिया है, जिसके प्रति वह आसक्त है। उसने किसी को शत्रु, किसी को मित्र आदि बना लिया है तथा सारे रिश्तों और सम्बन्धों को खड़ा कर लिया है। अतीत की सत्ता नहीं है, फिर भी उसके प्रति वह आसक्त है। भविष्य का अभी अस्तित्व ही नहीं है, फिर भी उसके दिमाग में अनेक महत्त्वाकांक्षी योजनाएं एवं अवधारणाएं हैं। वर्तमान सर्वथा क्षणिक है, फिर भी व्यक्ति में उसके प्रति अनेक नित्य, स्थिर एवं शुभ आदि विपरीत धारणाएं हैं। जैसे मकड़ी स्वयं जाल बुनकर उसमें फँस जाती है, उसी तरह व्यक्ति भी अपने बनाए संसार में बुरी तरह फँसकर दुःखी होकर भटक रहा है। बौद्ध लोग इन सारी बुराइयों की जड़ आत्मदृष्टि को मानते हैं और उस दृष्टि से मुक्त होने का उपदेश देते हैं। संसार में बौद्ध एकमात्र अनात्मवादी हैं। मृत्यु की अवस्था में अपने बनाए संसार से वियोग हो जाने की आशंका से व्यक्ति मृत्यु से भयभीत है। अन्यथा मृत्यु से भयभीत होने का कोई वास्तविक कारण नहीं है। मरण के दो भेद नाम और रूप धर्मों (पदार्थों) का प्रतिक्षण होने वाला विनाश “अप्रकट मरण” है। क्योंकि यह मरण सामान्य जनों को स्पष्ट रूप से अवबोधित नहीं होता क्योंकि क्षण का ज्ञान योगी जन ही कर सकते हैं, सामान्य जन नहीं कर सकते, अतः यह "अप्रकट मरण" कहलाता है। वर्तमान जन्म के अंत में नाम एवं रूपों का जो च्युतिकाल होता है; वह "प्रकट मरण” है। इसे ही सामान्यतया लोक में मरण कहा जाता है। मृत्यु के चार कारण आयुःक्षय, कर्मक्षय, उभय (दोनों का) क्षय तथा उपच्छेदक कर्म - इन चार कारणों से मृत्यु सम्पन्न होती है। जीवन के निश्चित् काल को आयुष् या जीवित कहते हैं। मनुष्यभूमि, देवभूमि आदि में निश्चित् आयुःप्रमाण होता है, जैसे मनुष्यभूमि में सामान्यतया आयु, आजकल, सौ वर्ष मानी जाती है। इसके अन्त में होने वाला मरण आयुःक्षय से “मरण” कहलाता है। इन चारों प्रकार के मरणों को हम दीपक के दृष्टान्त से इस प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं - 1. प्रज्वलित दीपक का बत्ती के क्षय से होने वाला निरोध / 2. तेल के क्षय से होने वाला दीपक का निरोध / 3. बत्ती एवं तेल दोनों से होने वाला निरोध /