________________ 24 . मृत्यु की दस्तक मरणानुस्मृति मरण चार प्रकार का होता है। ज्ञात है आयुष् को जीवित या जीवितेन्द्रिय भी कहते हैं। (1) एक भव (जन्म) में प्राप्त जीवितेन्द्रिय का उपच्छेदरूप मरण, (2) अर्हतों का सांसारिक दुःखों से सर्वथा समुच्छेद नामक समुच्छेद मरण, (3) संस्कारों (अपने हेतुओं से उत्पन्न पदार्थों) का क्षणभंग नामक क्षणिक मरण, तथा (4) वृक्षमरण, लौहमरण, पारदमरण आदि की तरह संवृत्तिमरण। इन चारों में से (अर्हतों के) समुच्छेदमरण का सम्बन्ध सर्वसाधारण से नहीं है, अपितु केवल अर्हतों से है। क्षणिक मरण की अनुस्मृति करना दुष्कर है, क्योंकि क्षण सर्वसाधारण को बोधगम्य नहीं है। (लौह, पारद, आदि का) संवृत्तिमरण संवेग (संसार से निर्वेद या वैराग्य) का उत्पादक नहीं होता। अतः ये तीन मरण यहाँ मरणानुस्मृति में अपेक्षित नहीं हैं। केवल जीवितेन्द्रिय का उपच्छेदरूपी मरण ही इस अनुस्मृति का विषय हो सकता है, अतः वही यहाँ अभिप्रेत है, क्योंकि वह सर्वसाधारण संवेद्य, सुकर एवं संवेगोत्पत्ति का कारण भी होता है। भावनाविधि मरणानुस्मृति की भावना के इच्छुक योगी को एकान्त में जाकर चित्त को अन्य आलम्बनों (विषयों) से हटाकर "मरण होगा, जीवितेन्द्रिय का उपच्छेद् होगा” अथवा “मरण, मरण" कहते हुए ठीक से मन में चिन्तन करना चाहिए। चिन्तन प्रकार भावना करते समय निम्न चार प्रकार से चिन्तन करना चाहिए - (1) जन्म के पश्चात् मृत्यु की निश्चितता, (2) मृत्यु के समय की अनिश्चितता, (3) मृत्यु के कारणों की अधिकता तथा (4) मृत्यु से कभी भी, कहीं भी छूट न सकना। जन्म के पश्चात् मृत्यु की निश्चितता सभी जीव जन्म के बाद एक क्षण भी बिना रुके मृत्युराज की ओर उन्मुख होकर दौड़ रहे हैं। हेतु-प्रत्ययों से उत्पन्न होने के बाद किसी वस्तु या व्यक्ति में (अपने उत्पाद के) द्वितीय क्षण तक भी स्थित रहने का सामर्थ्य नहीं होता। वे सतत् नष्ट होते रहते हैं। अतः “सभी संस्कार अनित्य हैं, ऐसा भगवान बुद्ध द्वारा कहा गया है। मृत्यु के समय की अनिश्चितता देहधारी प्राणियों के बीच - “यह पहले मरेगा, यह बाद में मरेगा" ऐसी कोई निश्चित् रेखा नहीं है। मरने की आशंका से रहित व्यक्ति भी बिजली गिरने से अकस्मात् मरते देखा जाता है। ऐसी परिस्थिति किसी पर भी, अपने ऊपर भी आ सकती है। .