________________ 208 मृत्यु की दस्तक स्वर्गलोक का मधुर स्वरूप, 131 स्वर्गवास, 9, 95 स्वेच्छा वरण से भी मृत्यु स्वीकार, 5, 139 स्पिनोजा, 129 सल्लेखना या मृत्यु-महोत्सव, 4, 26, 27, 28, 29 सल्लेखनापूर्वक मरण, 4 सहज मृत्यु, 132 साखी ग्रन्थ, 157 सांख्य दर्शन, 66 सामाजिक दृष्टि से जीवित, 172 सामाजिक मृत्यु, 13, 173, 175 सामाजिक मृत्यु तीन प्रकार की, 173 सामान्य मृत्यु, 96 सामान्योत्सर्ग अथवा वस्तुदान, 119 सावित्री, 11, 128, 155 सा, 8, 13, 131, 178 सिकन्दर, 151 सिख धर्म, 3, 45 सिख धर्म में मृत्यु, 5 सिख धर्म में मृत्यु के पश्चात् पितरलोक की कोई व्यवस्था नहीं, 49 सिन्हा, वशिष्ठ नारायण, 8, 93 सिंह, राघवेन्द्र प्रताप, 13, 180 सुकरात, 11, 131, 157, 189 सुरह निसा, 56 सुश्रुत, 43 सूर्य, 100 सूर्य, चन्द्रमा, अहोरात्र और संवत्सर को भी मृत्यु __कहते है, 72 सूर्य भी मृत्यु है, 7 सूर्य सिद्धान्त ज्योतिष का आर्ष ग्रन्थ, 9, 100 सूक्ष्म अव्यक्त ज्ञान-करणों में लौट जाते हैं, पाँच प्रकार के, 167 सूक्ष्म शरीर, 167 सूक्ष्म शरीर में पंच ज्ञानेन्द्रिय, पंच कर्मेन्द्रिय, 7, 91 सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का काल, 3 सृष्टि के आरंभ में मृत्यु या अमरता नहीं, 132 सेमाइटी धर्म, 2, 3 स्कंद पुराण, 4, 18, 19 स्कन्ध, पाँच प्रकार के, 21, 22 स्थू ल शरीर, 167 स्वचालित तंत्रिका (सिम्पेथेटिक), 10, 133 स्वर्ग का स्थान मोक्ष को दिया गया, 66 स्वर्गलोक, 131, 160 हदीस, 6, 50, 53, 54, 55 हनुमान, 98 हंसगायत्री, 66 हम न मरै मरिहै संसारा, हमकूँ मिल्या जियावनहारा, ___10, 195 हयात अर्थात् जीवन का विलोम, 50 यूम जैसे शून्यवादी, 141 हाइडेगर, मार्टिन, 13, 177 हाडारानी का स्वयं से शिरोच्छेदन, 140 हादिविद्या, 64 हार्ट लंग मशीन, 10 हिन्दू धर्मशास्त्र, 1, 2, 3 हिब्रू, 129 हीन, आत्मा का मृत्यु के बाद विलीन होना, 129 हुज्जतुल्लहिलवालेगह, 52, 53 . हून, आत्मा का मृत्यु के बाद जीवित रहना, 129 क्षुधा और तृषा प्राण के धर्म, 19 त्रिपाठी, बंशीधर, 7, 83 त्रिपाठी, रामशंकर, 4, 21 त्रिपिण्डी श्राद्ध, 121 ज्ञानदेव, (सन्त), 45 . ज्ञानेश्वर की जीवित समाधि, 1391 श्रम मृत्यु, 6, 72 श्राद्धकर्म, 123 श्रावकाचार, 27 . श्री सिद्धांतशिखामणि, 4, 18 श्रीमद्भगवद्गीता, 6, 8, 73, 76, 77, 83,89, 110, 127, 148, 160, 176 श्रीवास्तव, अजय कुमार, 11, 159 श्रीत प्रस्थान के अन्तर्गत, एकादश उपनिषदों की गणना, 83