________________ मृत्यु के आनन्ददायी उत्तम स्वरूप विधायक प्रतीक व्यक्तित्व : महात्मा कबीर - रमेश नारायण भारतीय साहित्य के इतिहास में अपने ढंग का अकेला प्रतीक-व्यक्तित्व महात्मा कबीर का ही था, जिन्होंने जीवन को आगे, पीछे, ऊपर, नीचे अपनी वास्तविक अनुभूति की झाड़न से झाड़-पोंछकर स्वच्छ, शुद्ध और अतीन्द्रिय सुख का केन्द्र बनाया। अपने जीवन के सारे मकड़जाले साफ करके शान्ति, सन्तोष और आनन्द की गठरी बाँध उन्होंने मृत्यु तक को अपने साफ-सुथरे जीवन से जोड़ दिया और मनुष्यमात्र के लिये एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जो उसके जीवन और जीवनान्तर की अबाध गतिशीलता का आधार बना। मनुष्य है अनिवार्यतः सामाजिक प्राणी और इस प्रकार उसका सामाजिक रुझान भी स्वाभाविक ही है। वह स्वयं अपने लिये सामाजिक संगठनों को रूप इस उद्देश्य से देता है कि आन्तरिक शान्ति की उसकी प्यास मिट सके और आत्मविकास के पथ पर वह निर्बाध आगे बढ़ सके। ऐसे संगठनों को निजी सुख और स्वत्व का साधन बना बैठना उनके पवित्र उद्देश्य की सिद्धि के लिए विघातक है। वास्तव में मनुष्य के दो रूप व्यवहार जगत्. में प्रकट होते हैं। एक तो उसका सजग चेतना वाला रूप है और दूसरा उसका स्थूल जागतिक रूप / उसकी सजग चेतना तो उसे ऊर्ध्वगामी बनाती है पर अपने स्थूल रूप में वह अधोमुखी प्रवृत्तियों का शिकार हो जाता है। सजग चेतना की ऊर्ध्वगामी प्रवृत्ति की फिसलन समयसमय पर चिर पवित्र मानव-संगठनों का उसके ही हाथों घोर दुरुपयोग करवा डालती है। ___ कबीर के युग-चित्रण का जो रूप हमें दृष्टिगत होता है उसकी गहरी समझ के लिए उनके समकालीन और उनके पहले के धार्मिक आन्दोलनों को परखने की आवश्यकता है जो तत्कालीन जन-मानस में उथल-पुथल मचा रहे थे और उनकी परम्पराएँ भी निर्मित हो