________________ जीवन की मृत्यु सहेली है 191 है शान्ति नहीं आराम नहीं। प्रतिदिन का जीना उलझन में। नाना विपदाओं के वन में। जो ज्ञात उसी के आँगन में। क्या आकर्षण इस जीवन में। इनके ही प्रति तो मरना है। इन सबसे पार उतरना है। पूरी समग्रता से जीना। सौन्दर्य नम्रता से जीना। अस्तित्व नहीं रहता भय का। होती सजीवता रसमयता। पूर्णतः शून्य मन होता है। उत्पन्न नयापन होता है। . सारे बंधन खुल जाते हैं। मन कलुष स्वयं धुल जाते हैं। मन बना रहे निर्दोष सदा। स्वीकार न हो कोई सत्ता। बीते कल के प्रति मर जाना। आनन्द प्रेम से भर जाना। वरदान एक, ऐसा मरना। जिसमें नवजीवन का झरना। क्यों मृत्यु समस्या बनी हुई। जब सदा साथ में लगी हुई। हमको है उसका ज्ञान नहीं। सामना नहीं कर पाते हम। सोचते और डर जाते हम। बिल्कुल आसान पहेली है। जीवन की मृत्यु सहेली है।