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________________ 190 . मृत्यु की दस्तक मित्र तो वह है ही। क्योंकि जब सब छोड़कर अलग हो जाते हैं, जिनको हम बहुत चाहते हैं, तब हमारे न चाहने पर भी मौत आती है और हमको गले लगाती है। सोचने की बात यह भी है कि जिन परिस्थितियों में आज का मनुष्य जी रहा है - अभाव, अन्याय, अत्याचार, अनाचार, बेकारी, बेरोजगारी, नाना प्रकार के रोग, दुःख, दवा की जगह दुआ का ही सहारा रह गया है तो इन परिस्थितियों से छुटकारा दिलाने वाली एकमात्र मौत ही है। . मृत्यु से सम्बधित कुछ अलौकिक, अद्वितीय दृष्टान्त हैं, जैसे नचिकेता और यमाचार्य का संवाद, सावित्री-सत्यवान की घटना जिसमें यमाचार्य को वापस लौटना पड़ा। इन पर महापुरुषों ने ज्ञानवर्द्धक महान् ग्रंथों की रचना की है, किन्तु मृत्यु के प्रति दृष्टिकोण' में परिवर्तन दृष्टिगत नहीं है। भगवान् ने भी कहा है कि जो दिखाई पड़ता है जीवन इतना ही नहीं है। इससे पहले भी था और बाद में भी रहेगा। लाचारी में इन बातों से थोड़ा संतोष अवश्य मिल जाता है, लेकिन समाधान नहीं हो पाता। दिन भर श्रम करने के बाद आराम मिलता है नींद से। वैसे ही जीवन के अन्त में मृत्यु भी आराम प्रदान करती है। सुनने और समझने में भी सुखद और सरल है लेकिन पर्याप्त नहीं है। . ___ संत विनोबा ने जीवन को संस्कार संचय कहा है। दिन भर की कमाई का मूल धन लेकर हम दूसरे दिन की जीवन-यात्रा शुरू करते हैं। वैसे ही अंतिम समय में जो संस्कार बचे रहते हैं वह अगले जन्म की पूँजी है। निद्रा, मृत्यु का लघु संस्करण है। रात में शरीर के सारे अवयवों को आराम मिल जाता है। निःस्वप्न निद्रा है तो मन की थकावट भी दूर हो जाती है। लेकिन प्राण निरन्तर काम करता रहता है। उसको विश्राम देने वाली एकमात्र मृत्यु ही है। प्राण को विश्राम देने वाली निद्रा का नाम है मृत्यु। अस्तु वह वरदानस्वरूप है। ___ मृत्यु के बाद नरक, स्वर्ग और ब्रह्मलोक तीन अवस्थाओं का समाधान इस रूप में होता है कि बुरा कर्म किया तो निद्रा में बुरे स्वप्न आयेंगे। अच्छा काम किया तो सुखद स्वप्न आयेंगे। यदि गहरी निःस्वप्न नींद आती है तो समझना चाहिए कि हम ब्रह्मलोक में हैं। प्राण की नींद कई वर्षों की हो सकती है। उसके बाद वह पुनः जन्म लेता है। इस रचना का समापन मैं अपनी एक कविता से करना चाहता हूँ जो श्री कृष्णमूर्ति जी के विचारों के प्रभाव में लिखी गई थी। शीर्षक है "मृत्यु" / हर पल हम अगर नहीं मरते। हर दम यदि मरने से डरते। ऐसा जीना क्या जीना है। परवश रह आँसू पीना है। यंत्रवत ज़िन्दगी चलती है। आकांक्षाओं में पलती है। सौन्दर्य प्रेम का नाम नहीं।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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